Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 197
________________ पांचवां उद्देशक] [243 44. निर्ग्रन्थ को दारुदण्ड वाला 'पादपोंछन' रखना या उसका उपयोग करना कल्पता है। विवेचन-वस्त्रखण्ड का पादपोंछन उपकरण पांव की रज आदि पोंछने के काम आता है / उसके भिन्न-भिन्न उपयोग पागम में वर्णित हैं। यहां पूर्वोक्त कारणों से काष्ठदण्डयुक्त पादपोंछन का साध्वी के लिये निषेध किया गया है और साधु को यदि आवश्यक हो तो वह दण्डयुक्त पादपोंछन रख सकता है / इस उपकरण सम्बन्धी अन्य जानकारी निशीथ उ. 2 सूत्र 1 के विवेचन में दी गई है। परस्पर मोक आदान-प्रदान विधि-निषेध 45. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अन्नमन्नस्स मोयं प्रापिबित्तए वा आयमित्तए वा नन्नत्थ गाढाऽगाढेसु रोगायकेसु / 45. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को एक दूसरे का मूत्र पीना या उससे मालिश करना नहीं कल्पता है, केवल उग्र रोग एवं आतंकों में कल्पता है / विवेचन-यद्यपि मूत्र अपेय है फिर भी वैद्य के कहने पर रक्तविकार, कोढ़ आदि कष्टसाध्य रोगों में अथवा सर्प-दंश या शीघ्र प्राणहरण करने वाले आतंक होने पर साधु और साध्वियों को मूत्र पीने की और शोथ आदि रोग होने पर उससे मालिश करने की छूट प्रस्तुत सूत्र में दी गई है / अनेक रोगों में गाय, बकरी आदि का तथा अनेक रोगों में स्वयं के मूत्रपान का चिकित्साशास्त्र में विधान किया गया है। इन कारणों से कभी साधु-साध्वी को परस्पर मूत्र के आदान-प्रदान करने का प्रसंग आ सकता है। इसी अपेक्षा से सूत्र में विधान किया गया है तथा सामान्य स्थिति में परस्पर लेन-देन करने का निषेध भी किया है। आचमन का अर्थ शुद्धि करना भी होता है किन्तु यहां पर प्रबल रोग सम्बन्धी विधान होने से मालिश करने का अर्थ ही प्रसंगानुकूल है। आहार-औषध परिवासित रखने के विधि-निषेध 46. नो कप्पइ निग्गंधाण वा निग्गंथोण वा पारियासियस्स प्राहारस्स तयप्पमाणमेत्तमवि, भूइप्पमाणमेत्तमवि, तोविंदुप्पमाणमेत्तमवि आहारमाहारेत्तए, नन्नत्थ गाढाऽगाढेसु रोगायंकेसु / 47. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथोण वा पारियासिएणं आलेवणजाएणं गायाई प्रालिपित्तए वा विलिपित्तए वा, नन्नत्य गाढाऽगाहिं रोगार्यकेहि / 48. नो कप्पह निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पारियासिएणं तेल्लेण वा जाव नवनीएण वा गायाई अभंगित्तए वा मक्खित्तए वा, नन्नत्य गाढाऽगाहिं रोगायंकेहि / 46. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को परिवासित (रात्रि में रखा हुआ) आहार त्वक् प्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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