________________ [बृहत्कल्पसूत्र भक्त-प्रत्याख्यान करके समाधिमरण करने वाली निर्ग्रन्थी की अन्य परिचारिका साध्वी के अभाव में सभी प्रकार की परिचर्या की व्यवस्था करें। / यद्यपि अनेक साध्वियां साथ में रहती हैं फिर भी कुछ विशेष परिस्थितियों में साध्वियों से न सम्भल सकने के कारण साधु को सम्भालना या सहयोग देना आवश्यक हो जाता है / सूत्र में केवल गिरती हुई निर्ग्रन्थी को निर्ग्रन्थ द्वारा सहारा देने आदि का कथन है। किन्तु कभी विशेष परिस्थिति में गिरते हुए साधु को साध्वी भी सहारा आदि दे सकती है, यह भी उपलक्षण से समझ लेना चाहिए। संयमनाशक छह स्थान 19. कप्पस्स छ पलिमंथू पण्णता, तं जहा 1. कोक्कुइए संजमस्स पलिम), 2. मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमंथू , 3. चक्खुलोलुए इरियावहियाए पलिमंथू , 4. तितिणिए एसणागोयरस्स पलिम), 5. इच्छालोलुए मुत्तिमग्गस्स पलिमंथू, 6. भिज्जानियाणकरणे मोक्खमग्गस्स पलिमंथू, सम्वत्थ भगवया अनियाणया पसत्था / 19. कल्प--साध्वाचार के छह सर्वथा घातक कहे गये हैं, यथा-- 1. देखे बिना या प्रमार्जन किए बिना कायिक प्रवृत्ति करना, संयम का घातक है। 2. वाचालता, सत्य वचन का घातक है। 3. इधर-उधर देखते हुए गमन करना, ईर्यासमिति का घातक है। 4. आहारादि के अलाभ से खिन्न होकर चिढ़ना, एषणासमिति का घातक है। 5. उपकरण आदि का प्रति लोभ, अपरिग्रह का घातक है / 6. लोभवश अर्थात् लौकिक सुखों की कामना से निदान (तप के फल की कामना) करना, मोक्षमार्ग का घातक है। क्योंकि भगवान् ने सर्वत्र अनिदानता-निस्पृहता प्रशस्त कही है। विवेचन यद्यपि संयम-गुणों का नाश करने वाली अनेक प्रवृत्तियां होती हैं तथापि प्रस्तुत सूत्र में मुख्य छह संयमनाशक दोषों का कथन किया गया है / "पलिमंथु" शब्द का अर्थ है--संयमगुणों का अनेक प्रकार से सर्वथा नाश करने वाला। 1. कौत्कुच्य-जो यत्र-तत्र बिना देखे बैठता है, शरीर को या हाथ पांव मस्तक आदि अंगोपांगों को बिना देखे या बिना विवेक के इधर-उधर रखता है, वह 17 प्रकार के संयम का नाश करने वाला होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org