Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 203
________________ छट्ठा उद्देशक अकल्प्य वचनप्रयोग का निषेध 1. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाई छ अवयणाई वइत्तए, तं जहा 1. अलियवयणे, 2. होलियवयणे, 3. खिसियवयणे, 4. फरुसवयणे, 5. गारत्थियवयणे, 6. विनोसवियं वा पुणो उदोरित्तए / 1. निर्ग्रन्थों निर्ग्रन्थियों को ये छह निषिद्ध वचन बोलना नहीं कल्पता है, यथा 1. अलीकवचन, 2. हीलितवचन, 3. खिसितवचन, 4. परुषवचन, 5. गार्हस्थ्यवचन, 6. कलहकारक वचन का पुनर्कथन / / विवेचन-१. अलीकवचन-असत्य या मिथ्या भाषण 'अलीकवचन' है। 2. होलितवचन-दूसरे की अवहेलना करने वाला वचन 'हीलितवचन' है। 3. खिसितवचन-रोषपूर्ण कहे जाने वाले या रोष उत्पन्न करने वाले वचन खिसितवचन' हैं। 4. परुषवचन-कर्कश, रूक्ष, कठोर वचन 'परुषवचन' हैं। 5. गार्हस्थ्यवचन-गृहस्थ-अवस्था के सम्बन्धियों को पिता, पुत्र, मामा आदि नामों से पुकारना 'गार्हस्थ्यवचन' हैं। 6. कलहउदीरणावचन-क्षमायाचनादि के द्वारा कलह के उपशान्त हो जाने के बाद भी कलहकारक वचन कहना 'व्युपशमित-कलह-उदीरण वचन' है। साधु और साध्वियों को ऐसे छहों प्रकार के वचन नहीं बोलने चाहिए। असत्य आक्षेपकर्ता को उसी प्रायश्चित्त का विधान 2. कप्पस्स छ पत्यारा पण्णत्ता, तं जहा 1. पाणाइवायरस वायं वयमाणे, 2. मुसावायस्स वायं वयमाणे, 3. प्रदिन्नादाणस्स वायं वयमाणे, 4. अविरइवायं बयमाणे, 5. अपुरिसवायं वयमाणे, 6. वासवायं वयमाणे। इच्चेए कप्पस्स छ पत्यारे पत्थरेत्ता सम्म अप्पडिपूरेमाणे तट्ठाणपत्ते सिया। 2. कल्प-साध्वाचार के छह विशेष प्रकार के प्रायश्चित्तस्थान कहे गये हैं, यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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