Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 195
________________ पांचवां उद्देशक [241 पर्यस्तिकापट्टक लगाकर इस तरह बैठना गर्वयुक्त प्रासन होता है। साध्वी के लिये इस प्रकार बैठना शरीर-संरचना के कारण लोक निन्दित होता है, इसलिये सूत्र में उनके लिये पर्यस्तिकापट्टक का निषेध किया गया है। भाष्यकार ने बताया है कि अत्यन्त आवश्यक होने पर साध्वी को पर्यस्तिकापट्टक लगाकर उसके ऊपर वस्त्र प्रोढ़कर बैठने का विवेक रखना चाहिए। साधु को भी सामान्यतया पर्यस्तिकापट्टक नहीं लगाना चाहिये, क्योंकि विशेष परिस्थिति में उपयोग करने के लिये यह औपग्रहिक उपकरण है। अवलम्बनयुक्त आसन के विधि-निषेध 35. नो कप्पइ निग्गंथीणं सावस्सयंसि आसणंसि आसइत्तए वा तुयट्टित्तए वा / 36. कप्पइ निग्गंथाणं सावस्सयंसि पासणंसि आसइत्तए वा तुपट्टित्तए वा। 35. निर्ग्रन्थी को सावश्रय (अवलम्बनयुक्त) आसन पर बैठना या शयन करना नहीं कल्पता है। 36. निर्ग्रन्थ को सावश्रय आसन पर बैठना या शयन करना कल्पता है / विवेचन-पूर्वोक्त सूत्रों में अवलम्बन लेने के लिये पर्यस्तिकापट्टक का कथन किया गया है और इन सूत्रों में अवलम्बनयुक्त कुर्सी आदि आसनों का वर्णन है / आवश्यक होने पर भिक्षु इन साधनों का उपयोग कर सकता है / इनके न मिलने पर पर्यस्तिकापट्ट का उपयोग किया जाता है। जिन भिक्षुओं को पर्यस्तिकापट्ट की सदा आवश्यकता प्रतीत होवे उसे अपने पास रख सकते हैं। क्योंकि कुर्सी आदि साधन सभी क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं होते। पूर्वोक्त दोषों के कारण ही साध्वी को अवलम्बनयुक्त इन आसनों का निषेध किया गया है। साधु-साध्वी कभी सामान्य रूप से भी कुर्सी आदि उपकरण उपयोग में लेना आवश्यक समझे तो अवलम्बन लिये बिना बे उनका विवेक पूर्वक उपयोग कर सकते हैं। सविसाण पीठ आदि के विधि-निषेध 37. नो कप्पइ निग्गंथोणं सविसाणंसि पीढंसि वा फलगंसि वा आसइत्तए वा तुट्टित्तए वा / 38. कप्पइ निग्गंथाणं सविसाणंसि पीढंसि वा फलगंसि वा प्रासइत्तए वा तुयट्टित्तए वा। 37. साध्वियों को सविषाण पीठ (बैठने की काष्ठ चौकी प्रादि) या फलक (सोने का पाटा आदि) पर बैठना या शयन करना नहीं कल्पता है / 38. साधुओं को सविषाण पीठ पर या फलक पर बैठना या शयन करना कल्पता है। विवेचन-पीढ़ा या फलक पर सींग जैसे ऊंचे उठे हुए छोटे-छोटे स्तम्भ होते हैं। वे गोल एवं चिकने होने से पुरुष चिह्न जैसे प्रतीत होते हैं / इसलिये इनका उपयोग करना साध्वी के लिए निषेध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217