Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 193
________________ पांचवां उद्देशक [239 किन्तु उपाश्रय के अन्दर पर्दा लगाकर के भुजाएं नीचे लटकाकर दोनों पैरों को समतल करके खड़े होकर आतापना लेना कल्पता है / 22. निर्ग्रन्थी को खड़े होकर कायोत्सर्ग करने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। 23. निर्ग्रन्थी को एक रात्रि आदि कायोत्सर्ग करने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। 24. निर्ग्रन्थी को उत्कुटुकासन से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। 25. निर्ग्रन्थी को निषद्याओं से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है / 26. निर्ग्रन्थी को वीरासन से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है / 27. निर्ग्रन्थी को दण्डासन से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है / 28. निम्रन्थी को लकुटासन से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। 29. निर्ग्रन्थी को प्रधोमुखी सोकर स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है / 30. निर्ग्रन्थी को उत्तानासन से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है / 31. निर्ग्रन्थी को आम्र-कुब्जिकासन से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है / 32. निर्ग्रन्थी को एक पार्श्व से शयन करने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है।। विवेचन शरीर को सर्वथा वोसिराकर मनुष्य तिर्यंच या देव सम्बन्धी उपसर्ग सहन करना साध्वी के लिये निषिद्ध है / / साध्वी यदि आतापना लेना चाहे तो ग्रामादि के बाहर न जाकर अपने उपाश्रय के अन्दर ही सूत्रोक्त विधि से आतापना ले सकती है। ___ समय निश्चित कर लम्बे काल के लिये खड़े रहकर कायोत्सर्ग करना भी साध्वी के लिये निषिद्ध है। भिक्षु को 12 प्रतिमाएं, मोयपडिमा प्रादि प्रतिमाएं, जो एकाकी रहकर की जाती हैं, वे भी साध्वी के लिये निषिद्ध हैं। समय निश्चित करके पांच प्रकार के निषद्यासन से भी बैठना साध्वी को निषिद्ध है। पांच प्रकार की निषद्या इस प्रकार है 1. समपादपुता-जिसमें दोनों पैर पुत-भाग का स्पर्श करें, 2. गो-निषद्यका--गाय के समान बैठना। 3. हस्तिशुण्डिका- दोनों पुतों के बल बैठकर एक पैर हाथी की सूड के समान उठाकर बैठना। 4. पर्यका-पद्मासन से बैठना और 5. अर्धपर्यंका-अर्ध पद्मासन अर्थात् एक पैर के ऊपर दूसरा पैर रखकर बैठना। साध्वियों को इन पांचों ही प्रकार की निषद्याओं से अभिग्रह करके बैठने का निषेध किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217