________________ [237 पांचवां उद्देशक] भाष्यकार लिखते हैं कि जहां पर वानरादि का या मयूरादि पक्षियों का संचार अधिक हो ऐसे स्थान पर साध्वियों को अकेले मल-मूत्र परित्याग के लिए नहीं जाना चाहिए। यदि जाना भी पड़े तो दण्ड को हाथ में लिए हुए किसी दूसरी साध्वी के साथ जाना चाहिए जिससे उन पशु-पक्षियों के समीप आने पर उनका निवारण किया जा सके। दिन में भी साध्वियों को मल-मूत्र परित्याग के लिए दण्ड हाथ में लेकर जाना चाहिए। साध्वी को एकाको गमन करने का निषेध 15. नो कप्पइ निग्गंथीए एगाणियाए गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा। 16. नो कप्पइ निग्गंथीए एगाणियाए बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा। 17. नो कप्पइ निग्गंथीए एगाणियाए गामाणुगामं दूइज्जित्तए, वासावासं वा वस्थए / 15. अकेली निर्ग्रन्थी को प्राहार के लिए गृहस्थ के घर में आना-जाना नहीं कल्पता है। 16. अकेली निर्ग्रन्थी को शौच के लिए तथा स्वाध्याय के लिए उपाश्रय से बाहर आनाजाना नहीं कल्पता है। 17. अकेली निम्रन्थी को एक गांव से दूसरे गांव विहार करना तथा वर्षावास करना नहीं कल्पता है। विवेचन-निर्ग्रन्थी को किसी स्थान पर अकेले रहना या अकेले कहीं आना-जाना योग्य नहीं है, क्योंकि स्त्री को अकेले देखकर दुराचारी मनुष्य के द्वारा आक्रमण और बलात्कार की सम्भावना रहती है। इसी कारण गोचरी के लिए उसे किसी गृहस्थ के घर में भी अकेले नहीं जाना चाहिए। मल-परित्याग के लिए ग्रामादि के बाहर जो भी स्थान हो, उसे 'विचारभूमि' कहते हैं और स्वाध्याय के लिये जो भी शांत स्थान हो उसे 'विहारभूमि' कहते हैं। इन भूमियों पर अकेले जाना, ग्रामानुग्नाम विहार करना और अकेले किसी स्थान पर वर्षावास करना भी साध्वी के लिए निषिद्ध है। साध्वी को वस्त्र-पानरहित होने का निषेध . ... . 18. नो कप्पइ निग्गंथीए अचेलियाए होत्तए। 19. नो कप्पइ निग्गंधीए अपाइयाए होत्तए। . .. 18. निर्ग्रन्थी को वस्त्ररहित होना नहीं कल्पता है। 19. निर्ग्रन्थी को पावरहित होना नहीं कल्पता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org