________________ [235 पांचवां उद्देशक] भाष्यकार ने यह भी कहा है कि परठते समय साधु इस बात का भी ध्यान रखे कि जिस गहस्थ के यहां से आहार लाये हैं वह देख तो नहीं रहा है? उसकी आँखों से ओझल ही परठना चाहिए / अन्यथा वह निन्दा करेगा कि देखो ये साधु कैसे उन्मत्त हैं जो ऐसे दुर्लभ प्राहार को ग्रहण करके भी फेंक देते हैं। इस सूत्र का तात्पर्य यह है कि कोई भी सचित्त पदार्थ या सचित्तमिश्रित खाद्य पदार्थ असावधानी से ग्रहण कर लिया जाए और सचित्त पदार्थ शोधन हो सके तो उनका शोधन करके अचित्त आहार खाया जा सकता है। यदि सचित्त पदार्थ ऐसे मिश्रित हों कि उनका निकालना सम्भव न हो तो वह मिश्रित आहार भी परठ देना चाहिए। जैसे-१. दही में प्याज के टुकड़े, 2. शक्कर में नमक, 3. सूखे ठंडे चूरमे आदि में गिरे हुए खशखश आदि के बीज, 4. घेवर या फीणी आदि में कीड़ियों आदि का निकालना सम्भव कम होता है और फूलन एवं रसज जीवों से संसक्त आहार भी शुद्ध नहीं हो सकता है, अतः ये परठने योग्य हैं / सचित्त जल-बिन्दु गिरे आहार को खाने एवं परठने का विधान 12. निग्गंथस्स य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठस्स अंतो पडिग्गहंसि दए वा, दगरए बा, दगफुसिए वा परियावज्जेज्जा से य उसिणभोयणजाए परिभोत्तब्वे सिया। से य सीयभोयणजाए तं नो अप्पणा भुजेज्जा, नो अग्नेसि वावए, एगते बहुफासुए थंडिले पडिलेहिता पमज्जित्ता परिट्टवेयध्वे सिया / 12. गृहस्थ के घर में आहार-पानी के लिए प्रविष्ट साधु के पात्र में यदि सचित्त जल, जलबिन्दु या जलकण गिर जाए और वह पाहार उष्ण हो तो उसे खा लेना चाहिए। ___ वह आहार यदि शीतल हो तो न खुद खावे न दूसरों को दे किन्तु एकान्त और प्रासुक स्थंडिलभूमि में परठ देना चाहिए / विवेचन-पूर्व सूत्र में संसक्त आहार सम्बन्धी विधि का कथन किया गया है और प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि वर्षा से या अन्य किसी की असावधानी से ग्रहण किए हुए आहार पर सचित्त पानी या पानी की बूदें अथवा बारीक छींटे उछलकर गिर जाएँ तो भिक्ष यह जानकारी करे कि वह आहार उष्ण है या शीतल ? यदि उष्ण है तो पानी की बूंदें अचित्त हो जाने से उस आहार को खाया जा सकता है / यथा खीचड़ी, दूध, दाल आदि गर्म पदार्थ / यदि ग्रहण किया हुआ भोजन शीतल है तो उसे नहीं खाना चाहिये किन्तु परठ देना चाहिए, यथा-खाखरा रोटी आदि / इस सूत्र के भाष्य-गाथा. 5910-5912 में स्पष्टीकरण करते हुए शीतल पाहार की मात्रा एवं स्पर्श आदि के विकल्प (भंग) किए हैं एवं गिरी हुई पानी की बूदों आदि को खाद्य पदार्थ से शस्त्रपरिणत होने या नहीं होने की अवस्थाएं बताई गई हैं। उनका सारांश यह है-'व्याख्यातो विशेषप्रतिपत्तिः' अतः पानी की मात्रा एवं शीत या उष्ण आहार की मात्रा और स्पर्श आदि के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org