________________ 224] [बहत्कल्पसूत्र 1. गंगा, 2. जउणा, 3. सरयू, 4. एरावई (कोसिया), 5. मही। अह पुण एवं जाणेज्जा एरावई कुणालाए जत्थ चक्किया एगं पायं जले किच्चा, एगं पायं थले किच्चा, एवं गं कप्पइ अंतोमासस्स दुक्खुत्तो वा, तिवखुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा। जत्थ एवं नो चक्किया एवं णं नो कप्पइ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा, तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा। 32. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को महानदी के रूप में कही गई, गिनाई गई प्रसिद्ध और बहत जल वाली ये पांच महानदियां एक मास में दो या तीन बार तैरकर पार करना या नौका से पार करना नहीं कल्पता है। वे ये हैं 1. गंगा, 2. जमुना, 3. सरयु, 4. ऐरावती (कोशिक) और 5. मही। किन्तु यदि जाने कि कुणाला नगरी के समीप जो ऐरावती नदी है वह एक पैर जल में और एक पैर स्थल (आकाश) में रखते हुए पार की जा सकती है तो उसे एक मास में दो या तीन बार उतरना या पार करना कल्पता है। यदि उक्त प्रकार से पार न की जा सके तो उस नदी को एक मास में दो या तीन बार उतरना या पार करना नहीं कल्पता है / विवेचन-जिन नदियों में निरन्तर जल बहता रहता है और अगाध जल होता है वे 'मदानदियां' कही जाती हैं। भारतवर्ष में सूत्रोक्त पांच के अतिरिक्त सिन्धू, ब्रह्मपुत्रा आदि अनेक नदियां हैं, उन सबका महार्णव और महानदी पद से संग्रह कर लिया गया है। सूत्र में प्रयुक्त 'उत्तरित्तए' पद का अर्थ है-स्वयं जल में प्रवेश करके पार करना तथा 'संतरित्तए' पद का अर्थ है-नाव आदि में बैठकर पार करना। साधू के स्वयं जल में प्रवेश करके पार करने पर जलकायिक जीवों की विराधना होती ही है और नदी के तल में स्थित कण्टक आदि पैर में लगते हैं। कभी जलप्रवाह के वेग से बह जाने पर आत्म-विराधना भी हो सकती है। नाव आदि से पार करने पर जल के जीवों की विराधना के साथ-साथ षट्कायिक जीवों की विराधना भी होती है और नाविक के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ता है / नाविक नदी पार कराने के पहिले या पीछे शुल्क मांगे तो देने की समस्या भी उत्पन्न होती है, इत्यादि अनेक दोषों की संभावना रहती है। यदि विशेष कारण से पार जाने-माने का अवसर प्रा जाय तो एक मास में एक बार ही पार करना चाहिए, क्योंकि सूत्र में दो या तीन बार नावादि से पार उतरने का स्पष्ट निषेध किया है। अन्य विवेचन के लिए निशीथ. उद्दे. 12 सूत्र 44 का विवेचन देखें। कुणाला नगरी और ऐरावती नदी का निर्देश उपलक्षण रूप है, अतः जहां साधुगण मासकल्प या वर्षाकल्प से रह रहे हों और उस नगर के समीप भी कोई ऐसी उथली नदी हो, जिसका कि जल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org