________________ 222] [बृहत्कल्पसूत्र विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में तीव्र कषाय एवं बहुत बड़े कलह को अपेक्षा से कथन किया गया है / ऐसी स्थिति में भिक्षु का मन उद्विग्न हो जाता है, चेहरा संतप्त हो जाता है तथा बोलने का विवेक भी नहीं रहता है। अतः उसे सूत्र-निर्दिष्ट कार्यों से उपाश्रय के बाहर जाना उचित नहीं है। किन्तु कषाय भावों की उपशांति होने पर ही गोचरी आदि के लिए जाना उचित है। सर्वप्रथम कषाय को उपशांत करना और उसके बाद प्राचार्य आदि जो भी बहुश्रुत वहां हों, उनके पास आलोचना (प्रायश्चित) करके कलह से निवृत्त होना आवश्यक है। ___ कलह से निवृत्त नहीं होने पर वह संयमभाव से भी च्युत हो जाता है और क्रमशः अधिक से अधिक प्रायश्चित्त का भागी होता है / कभी दुराग्रह एवं अनुपशांत होने पर अनुशासन के लिये उसे आलोचना किये बिना प्रायश्चित्त दिया जा सकता है। यदि समझाने पर भी वह न समझे एवं प्रायश्चित्त या अनुशासन स्वीकार न करे तो उसे गच्छ से अलग कर देने का भी सूत्र में विधान किया गया है अर्थात् उसके साथ मांडलिक पाहार एवं वंदना आदि व्यवहार नहीं रखा जाता है। सूत्र में विनय, अनुशासन एवं उपशांति के विधान के साथ और न्यायसंगत सूचना की गई है-प्रायश्चित्त ग्रहण करने वाला भिक्षु बहुश्रुत हो एवं प्रायश्चित्तदाता निष्पक्ष भाव न रखकर आगम विपरीत प्रायश्चित्त उसे देने का निर्णय करे तो वह उस प्रायश्चित्त को अस्वीकार कर सकता है। सूत्र के इस निर्देश से यह स्पष्ट होता है कि सूत्रविपरीत प्राज्ञा किसी की भी हो, उसे अस्वीकार करने से जिनाज्ञा की विराधना नहीं होती है, किन्तु अगीतार्थ अथवा अबहुश्रुत के लिए यह विधान नहीं है। परिहार-कल्पस्थित भिक्षु को वैयावृत्य करने का विधान 31. परिहारकप्पट्ठियस्स णं भिक्खुस्स कप्पइ आयरिय-उवमायाणं तदिवसं एगगिर्हसि पिंडवाय दवावेत्तए। तेण परं नो से कप्पइ असणं वा जाव साइमं वा दाउं वा अणुप्पदाऊ वा कप्पड से अन्नयरं वेयावडियं करेत्तए, तं जहा-- अट्ठावणं वा, निसीयावणं वा, तुयट्टावणं वा, उच्चार-पासवण-खेल-जल्ल-सिंघाणाणं विगिचणं वा विसोहणं वा करेत्तए। अह पुण एवं जाणेज्जा-छिन्नावाएसु पंथेसु आउरे, झिझिए, पिवासिए, तवस्ती, दुबले, किलते, मुच्छेज्ज वा, पवडेज्ज वा, एवं से कप्पइ असणं या जाव साइमं वा दाऊं वा अणुप्पदाऊ वा। 31. जिस दिन परिहारतप स्वीकार करे उस दिन परिहारकल्पस्थित भिक्षु को एक घर से आहार दिलाना प्राचार्य या उपाध्याय को कल्पता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org