Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 169
________________ चौथा उद्देशक] [215 4. अञ्जलिप्रग्रह-संयमपर्याय में ज्येष्ठ साधुनों के पास हाथ जोड़कर खड़े रहना या उनके सामने मिलने पर मस्तक झुका कर हाथ जोड़ना / 5. दान-शिष्य का देना-लेना। 6. निमन्त्रणशय्या, उपधि, आहार, शिष्य एवं स्वाध्याय आदि के लिए निमंत्रण देना / 7. अभ्युत्थान-दीक्षापर्याय में किसी ज्येष्ठ साधु के आने पर खड़े होना / 8. कृतिकर्म-अंजलिग्रहण, आवर्तन, मस्तक झुका कर हाथ जोड़ना एवं सूत्रोच्चारण कर विधिपूर्वक वन्दन करना। 9. वैयावृत्य-अंग-मर्दन आदि शारीरिक सेवा करना, आहार आदि लाकर के देना, वस्त्रादि सीना या धोना, मल-मूत्र आदि परठना एवं ये सेवाकार्य अन्य भिक्षु से करवाना। 10. समवसरण-एक ही उपाश्रय में बैठना सोना रहना प्रादि प्रवृतियां करना। 11. सन्निषद्या-एक आसन पर बैठना अथवा बैठने के लिए प्रासन देना। 12. कथा-प्रबन्ध-सभा में एक साथ बैठकर या खड़े रहकर प्रवचन देना। एक गण के या अनेक गणों के साधुअों में ये बारह ही प्रकार के परस्पर व्यवहार विहित होते हैं, वे परस्पर “साम्भोगिक" साधु कहे जाते हैं। जिन साधुओं में "भक्त-पान" के अतिरिक्त ग्यारह व्यवहार होते हैं, वे परस्पर अन्य-साम्भोगिक साधु कहे जाते हैं। प्राचार-विचार लगभग समान होने से वे समनोज्ञ साधु भी कहे जाते हैं / ___ समनोज्ञ साधुओं के साथ ही ये ग्यारह या बारह प्रकार के व्यवहार किये जाते हैं किन्तु असमनोज्ञ अर्थात् पार्श्वस्थादि एवं स्वच्छंदाचारी के साथ ये बारह प्रकार के व्यवहार नहीं किये जाते हैं / लोकव्यवहार या अपवाद रूप में गीतार्थ के निर्णय से उनके साथ कुछ व्यवहार किये जा सकते हैं। उनका कोई प्रायश्चित्त नहीं है। अकारण या गीतार्थ के अभाव में ये व्यवहार करने पर प्रायश्चित्त आता है। गृहस्थ के साथ ये सभी व्यवहार नहीं किये जाते हैं। साध्वियों के साथ उत्सर्गविधि से छह व्यवहार ही होते हैं एवं छह व्यवहार आपवादिक स्थिति में किये जा सकते हैं। उत्सर्ग व्यवहार अपवाद व्यवहार 1. श्रुत (दूसरा) 1. उपधि (पहला) 2. अंजलिप्रग्रह (चौथा) 2. भक्त-पान (तीसरा) 3. शिष्यदान (पांचवां) 3. निमन्त्रण (छठा) 4. अभ्युत्थान (सातवां) 4. वैयावृत्य (नवमा) 5. कृतिकर्म (आठवां) 5. समवसरण (दसवां) 6. कथा-प्रबन्ध (बारहवां) 6. सन्निषद्या (ग्यारहवां) ये बारह व्यवहार गृहस्थ के साथ करने पर गुरु चौमासी प्रायश्चित आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217