Book Title: Agam 25 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 167
________________ चौथा उद्देशक 212 कप्पइ से प्रायरिय-उवज्ञायत्तं निक्खिवित्ताणं अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उपसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उधसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। जत्थुत्तरिय धम्मविणयं लभेज्जा, एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरितए। जत्युत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। 23. भिक्षु यदि स्वगण से निकलकर अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार स्वीकार करना चाहे तो प्राचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछे विना अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है। किन्तु प्राचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछ कर अन्य गण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना कल्पता है। यदि वे आज्ञा दें तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना कल्पता है। यदि वे आज्ञा न दें तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है। यदि वहां संयमधर्म की उन्नति होती हो तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना कल्पता है। किन्तु जहां संयमधर्म की उन्नति न होती हो, वहाँ अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है। 24. गणावच्छेदक यदि स्वगण से निकलकर अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार स्वीकार करना चाहे तो गणावच्छेदक पद का त्याग किये बिना अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है। किन्तु गणावच्छेदक का पद छोड़कर अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना कल्पता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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