________________ तीसरा उद्देशक] [193 है। संयममर्यादा में सूक्ष्म अदत्त का भी सेवन करना उचित नहीं होता है, अज्ञात मालिक के समय ली गई आज्ञा से ज्ञात मालिक के समय ठहरने पर अदत्त का सेवन होता है। अतः वास्तविक मालिक के आ जाने पर उसकी आज्ञा ले लेना चाहिए। पूर्वाज्ञा से मार्ग आदि में ठहरने का विधान 32. से अणुकुड्डेसु वा, अणुभित्तीसु वा, अणुचरियासु वा, अणुफरिहासु वा, अणुपंथेसु वा, अणुमेरासु वा, सच्चेव उग्गहस्स पुन्वाणुण्णवणा चिट्ठइ / प्रहालंदमवि उग्गहे / 32. मिट्टी आदि से निर्मित दीवाल के पास, ईंट आदि से निर्मित दीवाल के पास, चरिका (कोट और नगर के बीच के मार्ग) के पास, खाई के पास, सामान्य पथ के पास, बाड़ या कोट के पास भी उसी पूर्वस्थित साधुओं की आज्ञा से जितने काल रहना हो, ठहरा जा सकता है। विवेचन—मार्ग में कोट आदि के किनारे या किसी के मकान की दीवार के पास ठहरना हो तो उसके मालिक की, राहगीर की अथवा शक्रेन्द्र की आज्ञा लेनी चाहिये / वहां बैठे साधुओं के उठने के पूर्व अन्य साधु आ जाएँ तो वे उसी आज्ञा में ठहर सकते हैं। उनको पुनः किसी की आज्ञा लेना आवश्यक सहीं है / यहां भाष्य में मकान की दीवाल के पास कितनी जगह का स्वामित्व किसका होता है, उसका अनेक विभागों से अलग-अलग माप बताया है। शेष भूमि राजा के स्वामित्व की होना बताया है। सेना के समीपवर्ती क्षेत्र में गोचरी जाने का विधान एवं रात रहने का प्रायश्चित्त ____33. से गामस्स वा जाव रायहाणीए वा बहिया सेण्णं सन्निविट्ठ पेहाए कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तद्दिवसं भिक्खायरियाए गंतूण पडिनियत्तए नो से कप्पइ तं रणि तत्येव उवाइणावेत्तए। जो खलु निग्गंथे वा निग्गंथी वा तं रणि तत्थेव उवाइणावेइ, उवाइणावेतं वा साइज्जइ / से दुहओ वि अइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं / 33. ग्राम यावत् राजधानी के बाहर शत्रुसेना का पडाव हो तो निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को भिक्षाचर्या के लिये बस्ती में जाकर उसी दिन लौटकर आना कल्पता है किन्तु उन्हें वहां रात रहना नहीं कल्पता है। जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी वहां रात रहते हैं या रात रहने वाले का अनुमोदन करते हैं, वे जिनाज्ञा और राजाज्ञा दोनों का अतिक्रमण करते हुए चातुर्मासिक अनुद्घातिक प्रायश्चित्त को प्राप्त होते हैं। विवेचन–सेना के पड़ाव के निकट से साधु को गमनागमन करने का प्राचा. श्रु. 2, अ. 3 में निषेध किया है और यहां विहारादि में अत्यन्त आवश्यक होने पर सेना के पडाव को पार कर ग्रामादि के भीतर गोचरी जाने का विधान है। __ इसका तात्पर्य यह है कि सेना के पडाव के समय में जहां भिक्षाचरों को केवल भिक्षा लेकर आने की ही छूट हो और अन्यों के लिये प्रवेश बन्द हो तब भिक्षु को भिक्षा लेकर के शीघ्र ही लौट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org