________________ 200] [बहत्कल्पसूत्र 4. विकथा-प्रमत्त-स्त्रीकथा, राजकथा आदि क्रियाएँ करने वाले विकथा-प्रमत्त कहे गए हैं / 5. निद्रा-प्रमत्त-स्त्यानद्धि-निद्रा वाले निद्रा-प्रमत्त कहे गए हैं। __ जो व्यक्ति घोर निद्रा में से उठकर नहीं करने योग्य भयंकर कार्यों को करके पुनः सो जाता है और जागने पर उसे अपने द्वारा किये गये दुष्कर कार्यों को कुछ भी स्मृति नहीं रहती है, ऐसे व्यक्ति को निद्रा-प्रमत्त कहते हैं। जो साधु किसी दूसरे साधु के साथ अनंग-क्रीड़ा रूप मैथुन करता है, वे दोनों ही पाराञ्चिक प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं। इस प्रकार दुष्ट, प्रमत्त और परस्पर मैथुनसेवी की शुद्धि पाराञ्चिक प्रायश्चित्त से होती है / अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त के स्थान 3. तओ अणवटुप्पा पण्णत्ता, तं जहा 1. साहम्मियाणं तेण्णं करेमाणे, 2. अन्नधम्मियाणं तेण्णं करेमाणे, 3. हत्थावालं दलमाणे। अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त योग्य ये तीन कहे गये हैं, यथा--- 1. सार्मिकों की चोरी करने वाला, 2. अन्यधामिकों की चोरी करने वाला, 3. अपसे हाथों से प्रहार करने वाला। विवेचन-इस सूत्र में बताया गया है 1. जो साधु अपने समान धर्म वाले साधर्मीजनों के वस्त्र, पात्र, पुस्तक आदि की चोरी करता है। 2. जो अन्यधार्मिक जनों के अर्थात् बौद्ध, सांख्य आदि मतों के मानने वाले साधु आदि के वस्त्र, पात्र, पुस्तक आदि की चोरी करता है। 3. जो अपने हाथ से दूसरे को ताडनादि करता है, मुट्ठी, लकड़ी आदि से मारता है या मन्त्र-तन्त्र आदि से किसी को पीड़ित करता है / इन तीनों को अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त पाता है। दीक्षा आदि के अयोग्य तीन प्रकार के नपुंसक 4-9. तओ नो कप्पंति पवावेत्तए, तं जहा 1. पण्डए, 2. वाइए, 3. कोवे / एवं मुण्डावेत्तए, सिक्खावेत्तए, उवट्ठावेत्तए, संभु जित्तए, संवासित्तए। इन तीन को प्रवजित करना नहीं कल्पता है, यथा१. पण्डक-महिला सदृश स्वभाव वाला जन्म-नपुसक, 2. वातिक-कामवासना का दमन न कर सकने वाला 3. क्लीब-असमर्थ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org