________________ प्रथम उद्देशक] [157 34 सूत्र 12-15, 20, 21, 25-33 अनेक प्रकार के कल्प्याकल्प्य उपाश्रयों का, 16-17 घटीमात्रक के (मिट्टी की घटिका की आकृति वाले मात्रक के) कल्प्याकल्प्य का, 18 चिलमिलिका (मच्छरदानी) रखने का, जल के किनारे खड़े रहना आदि का, 22-24 शय्यातर का संरक्षण ग्रहण करने–न करने का, क्लेश को पूर्णतः उपशान्त करने का, 35-36, 48 विचरण काल का एवं विचरण के क्षेत्रों की मर्यादा का, 37 विरोधी राज्यों के बीच गमनागमन न करने का, 38-41 गोचरी आदि के लिये गये हुए साधु-साध्वियों को वस्त्रादि लेने की विधि का, 42-43 रात्रि में आहारादि ग्रहण न करने का, 44 रात्रि में विहार न करने का, 45 रात्रि में दूरवर्ती संखडि (जीमनवार) के लिये न जाने का, रात्रि में उपाश्रय की सीमा के बाहर अकेले न जाने, इत्यादि भिन्न-भिन्न विषयों का वर्णन किया गया है। ॥प्रथम उद्देशक समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org