________________ 186] [बृहत्कल्पसूत्र 21. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को गृहस्थ के घर के भीतर 1. ठहरना , 2. बैठना, 3. सोना, 4. निद्रा लेना, 5. ऊंघ लेना, 6. अशन, 7. पान, 8. खादिम, 9. स्वादिम-आहार करना, 10. मल, 11. मूत्र, 12. खेंकार, 13. श्लेष्म परिष्ठापन करना, 14. स्वाध्याय करना, 15. ध्यान करना, 16. कायोत्सर्ग कर स्थित होना नहीं कल्पता है / यहां यह विशेष जानें कि जो भिक्षु व्याधिग्रस्त हो, वृद्ध हो, तपस्वी हो, दुर्बल हो, थकान या घबराहट से युक्त हो, वह यदि मच्छित होकर गिर पड़े तो उसे गृहस्थ के घर में ठहरना यावत् कायोत्सर्ग करके स्थित होना कल्पता है / विवेचन-भिक्षार्थ निकले हुए साधु को गृहस्थ के घर में ठहरना, बैठना आदि सूत्रोक्त कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि वहां पर उक्त कार्य करने से गहस्थों को नाना प्रकार की शंकाएं उत्पन्न हो सकती हैं / यह उत्सर्गमार्ग है। ___अपवाद रूप में बताया गया है कि यदि कोई साधु रोगी हो, अतिवृद्ध हो, तपस्या से जर्जरित या दुर्बल हो, या मूर्छा आ जाए, गिर पड़ने की सम्भावना हो तो वह कुछ क्षणों के लिए गृहस्थ के घर में ठहर सकता है। भाष्यकार ने कुछ और भी कारण ठहरने के बताये हैं। जैसे किसी रोगी के लिए औषधि लेने के लिए किसी घर में कोई साधु जावे और औषधदाता घर से बाहर हो, उस समय घर वाले कहें'कुछ समय ठहरिए, औषधदाता आने ही वाले हैं,' अथवा घर में प्रवेश करने के पश्चात् पानी बरसने लगे या उसी मार्ग से राजा आदि की सवारी या किसी की बारात आदि निकलने लगे तो साधु वहां ठहर सकता है। गृहस्थ के घर में मर्यादित वार्ता का विधान 22. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अंतरगिहंसि जाव चउगाहं वा पंचगाहं वा आइक्खित्तए वा, विभावित्तए वा, किट्टत्तए वा, पवेइत्तए वा। नन्नत्थ एगनाएणं वा, एगवागरणेण वा, एगगाहाए बा, एगसिलोएण वा; से वि य ठिच्चा, नो चेवणं अठिच्चा। 22. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को गृहस्थ के घर में चार या पांच गाथाओं द्वारा कथन करना, उनका अर्थ करना, धर्माचरण का फल कहना एवं विस्तृत विवेचन करना नहीं कल्पता है / किन्तु आवश्यक होने पर केवल एक उदाहरण, एक प्रश्नोत्तर, एक गाथा या एक श्लोक द्वारा कथन करना कल्पता है। वह भी खड़े रहकर कथन करे, बैठकर नहीं। विवेचन-गोचरी के लिए गये हुए साधु या साध्वियां गृहस्थ के घर में खड़े होकर गाथा, श्लोक श्रादि का उच्चारण ही न करें। यह उत्सर्गमार्ग है। भाष्यकार ने इसका कारण बताया है कि जहां पर साधु खड़ा होगा वहां से यदि किसी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org