________________ दूसरा उद्देशक] [167 15. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंयोण वा सागारियपिण्डं बहिया नोहडं असंसट्ठ पडिगाहित्तए। 16. कप्पइ निग्गंधाण वा निग्गंथीण वा सागारियपिण्डं बहिया नोहडं संसद्रं पडिगाहित्तए / 17. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियपिण्डं बहिया नोहडं-असंसठ्ठ संसट्ठे कारित्तए। 18. जे खलु निग्गंथो वा निग्गंथी वा सागारियपिण्डं बहिया नीहडं असंसट्ठ संसट्ठ कारेइ कारंतं वा साइज्जइ / से दुहओ विइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्धाइयं / 14. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को सागारिकपिण्ड (शय्यातरपिण्ड) जो कि बाहर नहीं निकाला गया है, वह चाहे अन्य किसी के आहार में मिश्रित किया हो या नहीं किया हो तो भी लेना नहीं कल्पता है। 15. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को सागारिकपिण्ड जो बाहर तो निकाला गया है, किन्तु अन्य के आहार में मिश्रित नहीं किया गया है तो लेना नहीं कल्पता है। 16. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को सागारिकपिण्ड जो घर के बाहर भी ले जाया गया है और अन्य के आहार में मिश्रित भी कर लिया गया है तो ग्रहण करना कल्पता है। 17. निर्ग्रन्थों और निर्गन्थियों को घर से बाहर ले जाया गया सागारिकपिण्ड जो अन्य के आहार में मिश्रित नहीं किया गया है, उसे मिश्रित कराना नहीं कल्पता है। 18. जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी घर के बाहर ले जाये गये एवं अन्य के आहार में अमिश्रित सागारिकपिण्ड को मिश्रित करवाता है या करवाने वाले का अनुमोदन करता है, वह लौकिक और लोकोत्तर दोनों मर्यादा का अतिक्रमण करता हुआ चातुर्मासिक अनुद्घातिक प्रायश्चित्त का पात्र होता है। विवेचन-पूर्व सूत्र में अनेक स्वामियों वाले मकान की प्राज्ञा लेने के सम्बन्ध में एवं शय्या के आज्ञादाता का आहार आदि न लेने का तथा अन्य स्वामियों के घरों से आहारादि लेने का विधान किया गया है। इन सूत्रों में अनेक व्यक्तियों का आहार एक स्थान पर एकत्रित हो एवं उनमें शय्यातर का भी आहारादि हो तो वह प्राहार कहां किस स्थिति में अग्राह्य होता है और कैसा ग्राह्य होता है इत्यादि विधान किया गया है। ___ अनेक व्यक्तियों का संयुक्त आहारस्थान यदि शय्यातर के घर की सीमा में हो और वहां शय्यातर का आहार अलग पड़ा हो अथवा सब के आहार में मिला दिया गया हो तो भी साधु को ग्रहण करना नहीं कल्पता है / यह प्रथम सूत्र का प्राशय है। अनेक व्यक्तियों का सम्मिलित आहार शय्यातर के घर की सीमा से बाहर हो एवं वहां शय्यातर का पाहार अलग रखा हो तो उसमें से लेना नहीं कल्पता है / यह दूसरे सूत्र का आशय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org