________________ प्रथम उद्देशक] 1. ग्राम-जहां अठारह प्रकार का कर लिया जाता है अथवा जहां रहने वालों की बुद्धि मंद होती है उसे 'ग्राम' कहा जाता है। 2. नगर-जहां अठारह प्रकार के कर नहीं लिए जाते हैं वह 'नगर' कहा जाता है। 3. खेड--जहां मिट्टी का प्राकार हो वह खेड या 'खेडा' कहा जाता है / 4. कर्बट–जहां अनेक प्रकार के कर लिये जाते हैं ऐसा छोटा नगर कर्बट (कस्बा) कहा जाता है। 5. मडंब---जिस ग्राम के चारों ओर अढ़ाई कोश तक अन्य कोई ग्राम न हो-वह मडम्ब कहा जाता है। 6. पट्टण-दो प्रकार के हैं-जहां जल मार्ग पार करके माल आता हो वह 'जलपत्तन' कहा जाता है / जहां स्थल मार्ग से माल आता हो वह 'स्थलपत्तन' कहा जाता है / 7. आकर---लोहा आदि धातुरों की खानों में काम करने वालों के लिये वहीं पर बसा हुवा ग्राम आकर कहा जाता है। 8. द्रोणमुख-जहां जलमार्ग और स्थलमार्ग से माल आता हो ऐसा नगर दो मुह वाला होने से द्रोणमुख कहा जाता है। 9. निगम-जहां व्यापारियों का समूह रहता हो वह निगम कहा जाता है। 10. प्राश्रम-जहां संन्यासी तपश्चर्या करते हों वह आश्रम कहा जाता है एवं उसके आसपास बसा हुआ ग्राम भी आश्रम कहा जाता है। 11. निवेश-व्यापार हेतु विदेश जाने के लिए यात्रा करता हुआ सार्थवाह (अनेक व्यापारियों का समूह) जहां पड़ाव डाले वह स्थान निवेश कहा जाता है / अथवा एक ग्राम के निवासी कुछ समय के लिए दूसरी जगह ग्राम बसावें-वह ग्राम भी निवेश कहा जाता है / अथवा सभी प्रकार के यात्री जहां-जहां विश्राम लें वे सब स्थान निवेश कहे जाते हैं। इसे ही आगम में अनेक जगह सन्निवेश कहा है। 12. सम्बाध-खेती करने वाले कृषक दूसरी जगह खेती करके पर्वत आदि विषम स्थानों पर रहते हों वह ग्राम सम्बाध कहा जाता है। अथवा व्यापारी दूसरी जगह व्यापार करके पर्वत आदि विषम स्थानों पर रहते हों, वह ग्राम सम्बाध कहा जाता है। अथवा जहां धान्य आदि के कोठार हों वहां बसे हुए ग्राम को भी सम्बाध कहा जाता है / 13. घोष-जहां गायों का यूथ रहता हो वहां बसे हुए ग्राम को घोष (गोकुल) कहा जाता है। 14. अंशिका-ग्राम का प्राधा भाग, तीसरा भाग या चौथा भाग जहां आकर बसे वह वसति 'अंशिका' कही जाती है / 15. पुटभेदन–अनेक दिशाओं से आए हुए माल की पेटियों का जहां भेदन (खोलना) होता है वह 'पुटभेदन' कहा जाता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org