________________ [बृहत्कल्पसूत्र होने के कारण साधु के लिये इसका निषेध किया गया है और साध्वी के लिये बाधक न होने से विधान किया गया है। ____ "घट" शब्द का अर्थ "मिट्टी का घड़ा" होता है और "घटी" या "घटिका" शब्द से छोटा घड़ा या छोटो सुराही अर्थ होता है / यथा"घडिगा" घटिका-मृन्मयकुल्लडिका / -सूय. पत्र 118 अल्पपरिचित सैद्धांतिक शब्दकोष, पृ. 381 भाष्य तथा टीका में कपड़े से मुख बंधा होने का तथा मिट्टी के होने का जो कथन है उससे भी सुराही जैसा होना सम्भव है क्योंकि सुराही जैसे छोटे मुख वाले पात्र के ही कपड़ा बांधा जाता है / अन्यथा तो पात्र या मात्रक कपड़े से ढंक कर ही रखे जाते हैं। __ मिट्टी का होने से खुरदरा हो सकता है जो जल्दी न सूखने के कारण प्रश्रवण के उपयोगी नहीं होता है अतः अन्दर चिकना बना करके ही साध्वी को रखना कल्पता है। वही पात्र अन्दर चिकना होने के कारण साधु के लिये आकार और स्पर्श दोनों से विकारजन्य हो जाता है। ऐसे ही मात्रक का यह विधि-निषेध समझना चाहिये। ___ भाष्य-टीका में इसे सामान्य प्रश्रवणमात्रक बताकर साधु को रखना अनावश्यक ही कहा है। किन्तु सामान्य प्रश्रवणमात्रक के ग्रहण करने का आगम में अनेक जगह उल्लेख है। अतः यहां ब्रह्मचर्यबाधक आकृतिविशेष वाला प्रश्रवणमात्रक ही समझना प्रसंगसंगत है। चिलमिलिका (मच्छरदानी) ग्रहण करने का विधान 18. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चलचिलिमिलियं धारित्तए वा परिहरित्तए वा। 18. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को चेल-चिलिमिलिका रखना और उसका उपयोग करना कल्पता है। विवेचन–चिलमिलिका यह देशी शब्द है, यह छोलदारी के आकार वाली एक प्रकार की वस्त्र-कुटी है / यह पांच प्रकार की होती है 1. सूत्रमयी--कपास आदि के धागों से बनी हुई, 2. रज्जुमयी-ऊन आदि के मोटे धागों से बनी हुई, 3. वल्कलमयी-सन-पटसन आदि की छाल से बनी हुई, 4. दण्डकमयी-बांस-वेंत से बनी हुई, 5. कटमयी-चटाई से बनी हुई। प्रकृत सूत्र में वस्त्र से बनी चिलमिली को रखने का विधान किया गया है, अन्य का नहीं। क्योंकि उनके भारी होने से विहार के समय साथ में ले जाना सम्भव नहीं होता है या बहुश्रम-साध्य होता है। चिलमिलिका का प्रमाण पाँच हाथ लम्बी, तीन हाथ चौड़ी और तीन हाथ ऊँची बताया गया है। इसके भीतर एक साधु या साध्वी का संरक्षण भलीभांति हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org