________________ प्रथम उद्देशक] [139 क्षुभित एवं भयभीत हो सकती है, उसके शील की रक्षा पुरुष की निश्रा से भलीभांति हो सकती है। क्योंकि क्षुद्र पुरुषों के द्वारा बलात्कार करने की आशंका बनी रहती है। अतः गुरुणी-प्रवर्तिनी से रक्षित होने पर भी श्रमणी को शय्यातर की निश्रा में रहना प्रावश्यक बताया गया है। किन्तु साधुवर्ग प्रायः सशक्त, दृढचित्त एवं निर्भय मनोवृत्ति वाला होता है तथा उसके ब्रह्मचर्य भंग के विषय में बलात्कार होना भी सम्भव नहीं रहता है। अतः वह शय्यातर की निश्रा के बिना भी उपाश्रय में रह सकता है / यदि चोर या हिंसक जीवों का या अन्य कोई उपद्रव हो तो साधु भी कभी शय्यातर से सुरक्षा का आश्वासन प्राप्त करके ठहर सकता है। गृहस्थ-युक्त उपाश्रय में रहने का विधि-निषेध 25. नो कप्पइ निग्गंधाण वा निग्गंथीण वा सागारिए उवस्सए वत्थए / 26. नो कप्पइ निग्गंथाणं इत्थि-सागारिए उवस्सए वत्थए / 27. कप्पइ निग्गंथाणं पुरिस-सागारिए उवस्सए वत्थए। 28. नो कप्पइ निग्गंथोणं पुरिस-सागारिए उवस्सए वत्थए / 29. कप्पइ निग्गंथीणं इस्थि-सागारिए उवस्सए वत्थए / 25. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को सागारिक (गृहस्थ के निवास वाले) उपाश्रय में रहना नहीं कल्पता है। 26. निग्रंन्थों को स्त्री-सागारिक (केवल स्त्रियों के निवास वाले) उपाश्रय में रहना नहीं कल्पता है। 27. निग्रन्थों को पुरुष-सागारिक (केवल पुरुषों के निवास वाले) उपाश्रय में रहना कल्पता है। 28. निर्ग्रन्थियों को पुरुष-सागारिक (केवल पुरुषों के निवास वाले) उपाश्रय में रहना नहीं कल्पता है। 29. निर्ग्रन्थियों को स्त्री-सागारिक (केवल स्त्रियों के निवास वाले) उपाश्रय में रहना कल्पता है। ___ विवेचन-सागारिक उपाश्रय दो प्रकार के होते हैं-द्रव्य-सागारिक और भाव-सागारिक / जिस उपाश्रय में स्त्री पुरुष रहते हों अथवा स्त्री-पुरुषों के रूप भित्ति आदि पर चित्रित हों, काष्ठ, पाषाणादिकी मूर्तियां स्त्री-पुरुषादि की हों, उनके शृगार के साधन वस्त्र, आभूषण, गन्ध, माला, अलंकार आदि रखे हों, जहां पर भोजन-पान की सामग्री रखी हुई हो, गीत, नृत्य, नाटक आदि होते हों, या वीणा, बांसुरी, मृदंगादि बाजे बजते हों, वह उपाश्रय स्वस्थान में द्रव्य-सागारिक है और परस्थान में भाव-सागारिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org