________________ 152] [बहत्कल्पसूत्र कप्पइ से अप्पबिइयस्स वा अप्पतइयस्स वा राओ वा वियाले वा बहिया बियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा। 47. नो कप्पई निग्गंथीए एगाणियाए राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा। कप्पइ से अप्पबिइयाए वा अप्पतइयाए वा अप्पचउत्थीए वा राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा। 46. अकेले निर्ग्रन्थ को रात्रि में या विकाल में उपाश्रय से बाहर की विचारभूमि या विहारभूमि में जाना-माना नहीं कल्पता है / उसे एक या दो निर्ग्रन्थों को साथ लेकर रात्रि में या विकाल में उपाश्रय की सीमा से बाहर की विचारभूमि या विहारभूमि में जाना-माना कल्पता है। 47. अकेली निर्ग्रन्थी को रात्रि में या विकाल में उपाश्रय से बाहर की विचारभूमि या विहारभूमि में जाना-माना नहीं कल्पता है / एक, दो या तीन निर्ग्रन्थियों को साथ लेकर रात्रि में या विकाल में उपाश्रय से बाहर की विचारभूमि या विहारभूमि में जाना-माना कल्पता है / विवेचन-मल-मूत्र त्यागने के स्थान को–'विचारभूमि' कहते हैं और स्वाध्याय के स्थान को 'विहारभूमि' कहते हैं। रात्रि के समय या सन्ध्याकाल में यदि किसी साधु को मल-मूत्र-विसर्जन के लिए जाना आवश्यक हो तो उसे अपने स्थान से बाहर विचारभूमि में अकेला नहीं जाना चाहिए। इसी प्रकार उक्त काल में यदि स्वाध्यायार्थ विहारभूमि में जाना हो तो उपाश्रय से बाहर अकेले नहीं जाना चाहिए। किन्तु वह एक या दो साधुओं के साथ जा सकता है। उपाश्रय का भीतरी भाग एवं उपाश्रय के बाहर सौ हाथ का क्षेत्र उपाश्रय की सीमा में गिना गया है, उससे दूर (आगे) जाने की अपेक्षा से सूत्र में 'बहिया' शब्द का प्रयोग किया गया है। स्वाध्याय के लिये या मल-विसर्जन के लिये दूर जाकर पुनः पाने में समय अधिक लगता है। इस कारण से अकेले जाने में अनेक आपत्तियों एवं आशंकाओं की सम्भावना रहती है / यथा 1. प्रबल मोह के उदय से या स्त्रीउपसर्ग से पराजित होकर अकेला भिक्षु ब्रह्मचर्य खंडित कर सकता है / 2. सर्प आदि जानवर के काटने से, मूर्छा आने से या कोई टक्कर लगने से कहीं गिरकर पड़ सकता है / 3. चोर, ग्रामरक्षक आदि पकड़ सकते हैं एवं मारपीट कर सकते हैं। 4. स्वयं भी कहीं भाग सकता है / 5. अथवा आयु समाप्त हो जाए तो उसके मरने की बहुत समय तक किसी को जानकारी भी नहीं हो पातो है इत्यादि कारणों से रात्रि में अकेले भिक्षु को मल त्यागने एवं स्वाध्याय करने के लिए उपाश्रय की सीमा से बाहर नहीं जाना चाहिये / उपाश्रय की सीमा में जाने पर उक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org