________________ 150] [बृहत्कल्पसूत्र कर ठहरते हैं तब उन्हें ठहरने के लिये मकान एवं जीवरक्षा आदि कारणों से पाट संस्तारक आदि रात्रि एवं विकाल में ग्रहण करना आवश्यक हो जाता है। सूर्यास्त-पूर्व मकान मिल जाने पर भी कभी आवश्यक पाट गृहस्थ की दुकान आदि से रात्रि के एक दो घंटे बाद भी मिलना सम्भव हो तो वह भी रात्रि में ग्रहण किया जा सकता है। __ऐसी परिस्थितियों की अपेक्षा से ही यह विधान समझना चाहिए। दूसरे सूत्र से रात्रि में वस्त्रादि ग्रहण करने का निषेध किया गया है किन्तु ग्रामानुग्राम विचरते समय कोई चोर आदि किसी साधु या साध्वी के किसी वस्त्र आदि को छीन ले जावे या उपाश्रय से चुरा ले जावे / कुछ समय बाद ले जाने वाले को यह सद्बुद्धि पैदा हो कि-"मुझे साधु या साध्वी का यह वस्त्र प्रादि चुराना या छीनना नहीं चाहिए था।" तदनन्तर वह सन्ध्या या रात के समय पाकर दे या साधु को दिखाई देने योग्य स्थान पर रख दे तो ऐसे वस्त्र आदि के ग्रहण करने को "हृताहृतिका" कहते हैं / पहले हरी गयो, पीछे पाहृत की गयी वस्तु "हृताहृतिका" कही जाती है। वह हृताहृतिक वस्त्र आदि कैसा हो, इसका स्पष्टीकरण सूत्र में परिभुक्त आदि पदों से किया गया है, जिनका अर्थ इस प्रकार है परिभुक्त-उस वस्त्र आदि को ले जाने वाले ने यदि उसे प्रोढ़ने आदि के उपयोग में ले लिया हो। धौत-जल से धो लिया हो। रक्त-पांच प्रकार के रंगों में से किसी रंग में रंग लिया हो / घृष्ट-वस्त्र आदि पर के चिह्न-विशेषों को घिसकर मिटा दिया हो। मृष्ट-मोटे या खुरदरे कपड़े आदि को द्रव्य-विशेष से युक्त कर कोमल बना दिया हो। सम्प्रधूमित–सुगन्धित धूप आदि से सुवासित कर दिया हो / इन उक्त प्रकारों में से किसी भी प्रकार का वस्त्र आदि यदि ले जाने वाला व्यक्ति रात में लाकर भी वापस दे तो साधु और साध्वी उसे ग्रहण कर सकते हैं। अपने अपहृत वस्त्र आदि के अतिरिक्त यदि कोई नवीन वस्त्र, पात्र, पादपोंछन आदि सन्ध्याकाल या रात्रि में लाकर दे तो उसे लेना साधु या साध्वी को नहीं कल्पता है। सूत्र में "हरियाहडियाए" ऐसा पाठ है, जिसका नियुक्तिकार ने "हरिऊण य प्राहडिया, छूढा हरिएसु वाऽऽहटु" इस प्रकार से उसके दो अर्थ किये हैं। प्रथम अर्थ के अनुसार वह स्वयं आकर दे और दूसरे अर्थ के अनुसार वह यदि "हरितकाय" (वृक्ष-झाड़ी आदि) पर डाल जाए और जिसका वह वस्त्रादि हो उसे चन्द्र के प्रकाश आदि में दिख जाए तो साधु या साध्वी सन्ध्या या रात के समय जाकर उसे ला सकता है। __अथवा उसे कोई अन्य पुरुष उठाकर और यह अमुक साधु या साध्वी का है, ऐसा समझ करके दे तो जिसका वह वस्त्रादि है, वह उसे ग्रहण कर सकता है। "हताहतिका" शब्द स्त्रीलिंग है इसलिए सूत्र में “सा वि य परिभुत्ता" आदि स्त्रीलिंग वाची पाठ है। इसका अर्थ है "चोरी में गई हुई वस्तु / " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org