Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 312
________________ सुन्दरबोधिनी टीका वर्ग ३ अध्य. ३ अति गाथापत्ति २८५ दक्षिणतटवासिनस्ते तथा, उत्तरकूलाः ये गङ्गाया उत्तरतटवासिनस्ते तथा, शङ्खध्माः शङ्ख ध्मात्वा नादयित्वा ये भुञ्जते ते तथा, कूलध्माः-कले तटे स्थित्वा शब्दं कृत्वा ये भुञ्जते ते कुलध्माः, मृगलुब्धकाः मृगं हत्वा तेनैव ये अनेकदिवसं भोजनतो यापयन्ति ते तथा, हस्तितापसाः हस्तिनं मारयित्वा तेनैव चिरकालं भोजनतो यापयन्ति ते तथा, उद्दण्डाः ऊर्ध्वकृतदण्डा एव ये संचरन्ति ते तथा, दिशामोक्षिणः=उदकेन दिशःमोक्ष्य ये फलपुष्पादिकं समुच्चिन्वन्ति ते तथा, वल्कवाससा=वृक्षत्वग्वस्त्रधारिणः, बिलवासिनः भूमिच्छिद्रवासिनः, जलवासिनःजले निषण्णा एव ये तिष्ठन्ति ते तथा, वृक्षमूलकाः=तरुतले ये निवसन्ति ते तथा, अम्बुभक्षिणः जलाहाराः, दक्षिण तटपर रहनेवाले, उत्तरकूल गङ्गाके उत्तर तटपर रहनेवाले, और शङ्खध्मा शङ्ख बजाकर भोजन करनेवाले, कूलध्मा तटपर स्थित होकर आवाज करते हुए भोजन करनेवाले, मृगलुब्धक-मृगको मारकर उसीके मांससे जीवन बीतानेवाले, हस्तितापस-हाथीको मारकर उसके मांससे जीवन बीतानेवाले, उद्दण्ड=दण्डको ऊँचा उठाकर चलनेवाले, दिशामोक्षी दिशाको जलसे सींचकर उसपर पुष्प फल आदिको चूनकर रखनेवाले, वल्कलवासस-वृक्षकी छालको धारण करनेवाले, विलवासी-भूमिके नीचेकी खोहमें रहनेवाले, जलवासी-जलमें ही रहनेवाले, वृक्षमूलक-वृक्षके मूलमें रहनेवाले, अम्बुभक्षो-जल मात्रका आहार करनेवाले, वायुનદીને ઉત્તર કિનારે રહેવાવાળા તથા =શંખ વગાડીને ભજન કરવાવાળા कूलमान ५२ मेसी २हीन सवा ४२ ४२वावा, मृगलुब्धक भृगने भाशन तेना भांसथी. वन पाता , हस्तितापस-थान भारीन तेन भांसथा वन वाताना, उदण्ड ने ये GIsी यासना, दिशाप्रोक्षी દિશાઓને પાણીથી માર્જન કરીને (પાણી છાંટીને) તેના ઉપર પુષ્પફલ વીણીને रामनारा, वल्कलवासस-वृक्षनी छासन धा२॥ ४२पावापा, बिलवासो-भूभिनी नायना गुसमा २नारा, जलवासीसमior २हेना, वृक्षमूलक-पृक्षना भूभा २२वापाणा, अम्धुभक्षीमात्रा मार सेना, वायुभक्षीपायु मात्रथा શ્રી નિરયાવલિકા સૂત્ર

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