Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 447
________________ ४२० ___५ वृष्णिदशास्त्र नानाविधाः=अनेकपकाराः वृक्षाश्च गुच्छा:-स्तबकाश्च गुल्मास्तम्बाश्च (स्कन्धरहितास्तरवः ) लता व्रततयश्च वल्यः लताविशेषाश्च, ताभिः परिगतः=सम्माप्तः अभिरामः शोभा यत्र स तथा अनेकमकारकतरुस्तवकस्तम्बलतावल्लीसम्माप्तच्छविः, हंस-मृग-मयूर-क्रौञ्च-सारस-चक्रवाकमदनशाला कोकिलकुलोपपेतः हंसाः असिद्धाः, मृगाः हरिणाः, मयूराः, क्रौश्चाः, सारसाः, चक्रवाकाः, मदनशाला: सारिकाविशेषाः, कोकिलाश्च,तेषां यत् कुलंसमूहस्तेन उपपेतः युक्तः । अनेकतटकटकविवरावझरमपातप्राग्भारयोजन लम्बी यावत् प्रत्यक्ष देवलोक सदृश 'प्रसादीया =मनको प्रसन्न करने वाली तथा 'दर्शनीया '=देखने योग्य एवं ' अभिरूपा'=सुन्दर छटावाली और 'प्रतिरूपा 'अनुपम शिल्पकलासे सुशोभित थी। उस द्वारावती नगरीके बाहर ईशानकोणमें ऊँचा तथा आकाशको छूनेवाले शिखरोंसे युक्त रैवतक नामक पर्वत था। वह पर्वत अनेक प्रकारके वृक्ष गुच्छ गुल्म और लता बल्लियोंसे मनोहर था। वह हंस, मृग, मयूर, क्रौञ्च ( पक्षी विशेष ) सारस, चक्रवाक, मदनशाला ( मैना ) और कोकिल आदि पक्षिवृन्दसे सुशोभित था। तथा जिसमें अनेक तट-किनारे और कटक-पर्वतका रमणीय भाग, तथा विवर-सुन्दर गुफाएँ और अवझर सुन्दर झरने एवं प्रपात-जहाँ झरना गिरता है वह स्थान, तथा प्राग्भारपर्गतका झुका योजन यांनी यावत् प्रत्यक्ष देवता की, प्रसादीयामनने प्रसन्न ४२वाजी तथा दर्शनीया ६५वा याय, अभिरूपा-सु४२ छावाजी मने प्रतिरूपा=मनुपम શિલ્પકલાથી સુશોભિત હતી. તે દ્વારાવતી નગરીની બહાર ઇશાન કેણમાં ઊંચે તથા ગગનચુંબી શિખરવાળે રૈવતક નામ પર્વત હતો. તે પર્વત અનેક જાતનાં વૃક્ષ, ગુચ્છ, ગુલ્મ અને લતાવલ્લીઓથી મનહર હતે. વળી તે હંસ, भृग, मयूर, पोय ( पक्षी ), सारस, य१४ , भहनशा (मेन) भने आदि આદિ પક્ષીવૃન્દથી સુશોભિત હતો. તથા જેમાં અનેક તર=કિનારા અને રાત્ર पतिना २भएणीय MIN तथा विवर-सुंदर सुशामा अनेअवझर सुंE२ १२॥ी, બા=જ્યાં ઝરણું પડે છે તે સ્થાન, તથા રાજુમા = પર્વતના નમેલા રમણીય શ્રી નિરયાવલિકા સૂત્ર

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