Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 448
________________ सुन्दरबोधिनी टीका वर्ग ५ अध्य- १ निषध शिखरमचुरः - अनेकानि तटानि तीराणि कटका: = गण्डशैलाः पर्वतात्संत्रुय्यपतिता महापाषाणाः, विवराणि छिद्राणि, अवझराः - निर्झरविशेषाः, प्रपाता:= भृगवः = गर्त्तरूपाणि निर्झरणजलपतनस्थानानि, प्राग्भारा : - ईषदवनताः पर्वतप्रदे ४२१ 1 हुआ रम्य प्रदेश और अनेक सुन्दर शिखर विद्यमान थे । वहाँ अप्सरागण देवगण और विद्याधरोंके युगल आकर क्रीडा करते थे । और जहाँ जङ्घाचरण विद्याचरण मुनि भी ध्यान मौनादिके लिये निवास करते थे । तथा वह पर्वत उत्सवका एक रमणीय स्थल था। और नेमिनाथ भगवान से युक्त होनेके कारण तीनों लोकमें श्रेष्ठ बलवीर दशाहका वह पर्वत सोम - आह्लाद उत्पन्न करनेवाला था, शुभ = मंगलकारी था प्रियदर्शन - नेत्रोंको सुख देनेवाला था, सुरूप = सुहावना था, प्रसादीय = मनको प्रसन्न करनेवाला था, दर्शनीय = देखने योग्य था, अभिरूप = अपनी सुन्दरताके कारण चमकता था, प्रतिरूप = दर्शक जनों के हृदयमें प्रतिबिम्बित हो जाता था । उस रैवतक पर्वतके समीपमें नन्दनवन नामक उद्यान था, जो सभी ऋतुओंके फूलोंसे सम्पन्न यावत् दर्शनीय था । उस नन्दनवन उद्यानमें सुरप्रिय यक्षका यक्षायतन बहुत ભાગ અને સુદર શિખર વિદ્યમાન હતા ત્યાં અપ્સરાગણ, દેવગણુ, અને વિદ્યાધરાનાં જોડલાં આવીને ક્રીડા કરતાં હતાં અને જ્યાં જ ઘાચરણ, વિદ્યાચરણ મુનિ પણ ધ્યાન, મૌન આદિ માટે નિવાસ કરતા હતા. તથા આ પર્વત હમેશાં ઉત્સવનું એક રમણીય સ્થાન હતું અને નેમીનાથ ભગવાનથી યુક્ત હાવાથી ત્રણે લેાકમાં શ્રેષ્ઠ ખલવીર દશાઈના તે પર્યંત સોમ-આહ્લાદ ઉત્પન્ન કરવાવાવાળા હતા, शुभ=भंगणारी हतो, प्रियदर्शन=नेत्रीने सुख आपवावाणी हतो, सुरूप = ३याणी शोलाहार हतो, प्रासादीय= भनने प्रसन्न खावाणी हतो, दर्शनीय = लेवा योग्य हतो, अभिरूप = पोतानी सुंदरताने सीधे यमस्तो हतो, प्रतिरूप =लेनारनां हृध्यमां છાપ પાડે તેવા હતા, ( પ્રતિબિંબિત થઇ જતા હતા. ) તે રૈવત પર્વતની પાસે નન્દનવન નામે એક ઉદ્યાન હતા. જે બધી ઋતુઓમાં ફૂલાથી સંપન્ન હાવાથી दर्शनीय हतो. ते नन्हनवन उद्यानभां सुरप्रिय=यक्षनुं यक्षायतन महु प्रथीन हेतु શ્રી નિરયાવલિકા સૂત્ર

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