Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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में परिवेष्टित करने वाले घनोदधि प्रभृति वायुओं को वलयाकार माना हैं। तिलोयपत्ति नन्थ में पृथ्वी (जम्बूद्वीप) की उपमा खड़े हुए मृदंग के ऊर्ध्व भाग (सपाट गोल) से दी गई है। २ दिगम्बर परम्परा के जम्बूद्दीवपण्णत्ति ३ ग्रंथ में जम्बूद्वीप के आकार का वर्णन करते हुए उसे सूर्यमण्डल की तरह वृत्त बताया है।
__उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि जैन साहित्य में पृथ्वी नारंगी के समान गोल न होकर चपटी प्रतिपादित है। जैन परम्परा ने ही नहीं वायुपुराण, पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तरपुराण, भागवतपुराण प्रभृति पुराणों में भी पृथ्वी को समतल आकार, पुष्कर पत्र समाकार चित्रित किया है। आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से पृथ्वी नारंगी की तरह गोल है। भारतीय मनीषियों द्वारा निरूपित पृथ्वी का आकार और वैज्ञानिकसम्मत पृथ्वी के आकार में अन्तर है। इस अन्तर को मिटाने के लिए अनेक मनीषीगण प्रयत्न कर रहे हैं। यह प्रयत्न दो प्रकार से चल रहा है। कुछ चिन्तकों का यह अभिमत है कि प्राचीन वाङ्मय में आये हुए इन शब्दों की व्याख्या इस प्रकार की जाये जिससे आधुनिक विज्ञान के हम सन्निकट हो सकें तो दूसरे मनीषियों का अभिमत है कि विज्ञान का जो मत है वह सदोष है, निर्बल है; प्राचीन महामनीषियों का कथन ही पूर्ण सही है।
प्रथम वर्ग के चिन्तकों का कथन हैं कि पृथ्वी के लिये आगम-साहित्य में झल्लरी या स्थाली की. उपमा दी गई है। वर्तमान में हमने झल्लरी शब्द को झालर मानकर और स्थाली शब्द को थाली मानकर पृथ्वी को वृत्त अथवा चपटी माना है। झल्लरी का एक अर्थ झांझ नामक वाद्य भी है और स्थाली का अर्थ भोजन पकाने वाली हँडिया भी है. पर आधुनिक युग में यह अर्थ प्रचलित नहीं है। यदि हम झांझ और हँडिया अर्थ मान लें तो पृथ्वी का आकार गोल सिद्ध हो जाता है। जो आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से भी संगत है। स्थानांगसूत्र में झल्लरी शब्द झाँझ नामक वाद्य के अर्थ में व्यवहत हुआ है। ५
दूसरी मान्यता वाले चिन्तकों का अभिमत है कि विज्ञान एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे सतत अनुसन्धान और गवेषणआ होती रहती है। विज्ञान ने जो पहले सिद्धान्त संस्थापित किये थे आज वे सिद्धान्त नवीन प्रयोगों और अनुसन्धानों से खण्डित हो चुके हैं। कुछ आधुनिक वैज्ञानिकों ने 'पृथ्वी गोल है' इस मान्यता का खण्डन किया है। लंदन में 'फ्लेट अर्थ सोसायटी' नामक संस्था इस सम्बन्ध में जागरूकता से इस तथ्य को कि पृथ्वी चपटी है, उजागर करने का प्रयास कर रही है, तो भारत में श्री अभयसागर जी महाराज व आर्यिका ज्ञानमती जी दत्तचित्त होकर उसे चपटी सिद्ध करने में संलग्न हैं । उन्होंने अनेक पुस्तकें भी इस सम्बन्ध में प्रकाशित की हैं । अतः जिज्ञासु वर्ग उनके अध्ययन से बहुत कुछ नये तथ्य ज्ञात कर सकेगा। द्वितीय वक्षस्कार : एक चिन्तन
१. घनोदहिवलए-वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए। -जीवाजीवाभिगम ३।१।७६ २. मज्झिमलोयायारो उब्भिय-मुरअद्धसारिच्छो। -तिलोयपण्णत्ति १ । १३७
जम्बूद्दीवपण्णत्ति १।२०तुलसीप्रज्ञा, लाडनूं, अप्रेल-जून १९७५, पृ.१०६, ले. युवाचार्य महाप्रज्ञजी
मज्झिमं पुण झल्लरी। -स्थानांग ७।४२ &. Research Article-A criticism upon modem views of our earth by Sri Gyan Chand Jain (Appeared in P. Sri
Kailash Chandra Shastri Felicitation Volume PP. 446-450)
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