Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 543
________________ रइएसु पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई मूलसद्दो सक्कयस्थो सुत्तंकाइ । मूलसहो सक्कयत्थो सुत्तंकाइ अबुट्ठाई अर्धचतुर्थानि १९८४, अधेसत्तमपुढवि. अधःसप्तमपृथ्वी १९८५ ३४२[१] अवम्मत्थिकाए अधर्मास्तिकायः ५, २७०, अधेसत्तमाए अधःसप्तम्याम् ३३४ २७१, २७२[२], २७३, अधेसत्तमापुढविने- अधःसप्तमपृथ्वी५०१ नैरयिकेषु ६७२[२] अधम्मस्थिकाएण अधर्मास्तिकायेन १००२ अधेसत्तमापुढ. अधःसप्तमपृथ्वीअधम्मस्थिकाएणं विनेरइय० नैरयिक ६५६ [३] अधम्मत्थिकाय अधर्मास्तिकाय २७०, अधेसत्तमापुढ- अधःसप्तमपृथ्वी २७१, २७३ विनेरइया नैरयिकाः ५७५, ६४६ अधम्मत्थिकायस्स अधर्मास्तिकायस्य ५, अधोलोए अधोलोके २८४, २८५, २७२ [२], ५०१, २८७, २९२, २९३, १००३[१] २९९,३०१ अधिगया अधिगताः ११० गा.१२० अधोलोय अधोलोक २८५तः २८७, ०-अधिवती __अधिपतिः १९७[२], २९०, २९३, २९४, १९८[२] ३०१, ३०२, ३०४, -अधिवतीणं अधिपतीनाम् १७८ ३०६ तः ३०८,३२०, [१-२], १७९[२], १८० [२], १८२ [२], १८८, अनाणा अज्ञाने ४८२[२] १९० [२], १९५[१२], -अजे १९६, १९७[२], अपइट्टाणे अप्रतिष्ठानः १७४ १९८[२] अपक्काणं अपक्वानाम् पृ.२९६ अधेदिसाए अधोदिशायाम् ३२७,३२९ टि.९ अधेलोए अधोलोके २७८ तः २८३, __ अपञ्चकावाणकिरिया अप्रत्याख्यानक्रिया २८८ तः २९१, २९५तः ११२९,११३९,११४१, २९८, ३००, ३०२, ११४२, १६२१, १६२५, ३०४ तः ३०७, ३०९, १६३०, १६३४, १६३५ ३११ तः ३२४, ३२६, [४], १६५७, १६५८, ३२८ १६६० अधेलोय. अधोलोक २७९ तः २८४, अपञ्चखाण. अप्रत्याख्यान २८८, २८९, २९१, किरियाओ क्रियाः १६६३ २९२, २९५ तः २९९, अपच्चक्खाण- अप्रत्याख्यान३०५, ३०९ तः ३१९, वत्तिया प्रत्यया ३२३, ३२४, ३२६, अपच्चक्खाणिया अप्रत्याख्यानिकी पृ.३५८ ३२८ टि.१ अधेलोय-. अधोलोक ३०० अपच्चक्खाणिस्स अप्रत्याख्यानिनः १६२५ अधेसत्तमपुढवि अधःसप्तमपृथ्वी अपञ्चक्खागे अप्रत्याख्यान: ९६२[१], ३४२ [२-३] । १६९१[४] अन्ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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