Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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मूलसद्दो
२५८
पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई सक्कयत्यो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो सक्कयत्यो सुत्तंकाइ [१], १९५ [१], १९६,
१९० [२], १९५ १९७ तः २०६ सूत्राणां
[१-२], १९६, १९७ प्रथमकण्डिका, २०७ तः
[२], १९८ [२] २११
० परिहा परिखाणि ११७, १७८ परिवसंति परिवसतः १७८ [२],
[१], १८८ १८१ [२], १८४ [२], परिहाण परिधान
१८७ १८९ [२], १९३ [२], .परिहाणीए परिहान्था २११
१९५ [२] परिहायमाणी परिहीयमाना २११ परिवाडी परिपाटिः १००३ [२] परिहारविसुद्धिय परिहारविशुद्धिक १३६ परिवाडीए परिपाट्या १७०२ [३१] परिहारविसुद्धिय० परिहारविशुद्धिक १३३, .परिवारिया परिवारितानि पृ. ५६ टि.
३, पृ. ६४ टि. २ परिहारविसुद्धिय- परिहारविशुद्धिकपरिविद्धंसयित्ता परिविद्ध्वस्य १८०१ चरित्तपरिणामे चारित्रपरिणामः ९३६ ० परिवुड्डी परिवृद्धिः ५०७, ५२८,
परिहिया परिहितवन्तः १७८ [१] ५३४, ५४०, ५४१,
परिहितवन्तौ १७८ [२] [२], ९८७ [५], १०२२ परिहिया परिहिताः १७७, १७८
[१], १८८, १९६ परिवेढिए परिवेष्टितः १०००
परिहितो १७८ [२] परिव्वायगाणं परिव्राजकानाम् १४७० परिहीणं परिहीनम् २१७५ परिसप्प परिसर्प १५१८ [६] परिहीणा परिहीनाः २११गा. १६६ परिसप्प०
परूविया प्ररूपिताः ५४ [११] [७, १२-१८ परेण
परेण ११० गा. १२२, परिसप्पथलयर- परिसर्पस्थलचर
१६७९ तिरिक्खजोणिय- तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौ- परोक्खवयणं परोक्षवचनम् ८९७ पंचेंदियओरा- दारिकशरी
परोक्खवयणे लियसरीरे रम् १४८५[१, ५] परोप्परं परस्परम् १६११, परिसप्पथलयर- परिसर्पस्थलचर.
१६३५ [१,३-४] पंचेंदियतिरिक्ख- पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः पलंघेज्ज प्रलञ्जयेत् २१७४ [४] जोणिया
पलंड[कंद] . पलाण्डुकन्द ५४ [-] परिसप्पाण परिसर्पाणाम् १५२४ [२]
गा. ८९ ० परिसप्पाण , १५२४ [२] पलंब . प्रलम्ब
१८८ परिसप्पाणं ,, ८४ [४], ८५ [५] पलंब०
१७७, १७८ परिसाडइत्ता परिशाध्य १८०१
[१२], १८८, १९६ .परिसाडेसु परिशाटेषु
पलंबमाण प्रलम्बमान पृ.६५टि. ७ परिसाणं परिषदाम् १७७, १७८ पलासे
पलाशः ४० गा. १३ [१-२], १७९ [२], १८० पलिओवमट्ठभागो पल्योपमाष्टभागः ३९५ [२], १८२ [२], १८८,
[१,३], ३९६ [१,३]
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