Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text ________________
सयं
बीयं परिसिटुं-सहाणुकमो
३७१ मूलसद्दो सक्कयत्थो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो सक्कयत्यो सुत्तंकाइ सम्मुच्छिमाण सम्मृच्छिमाणाम् १५१२ ०सयसहस्साणं शतसहस्राणाम् १७७,१८० सम्मुच्छिमाणं सम्मूछिमाणाम् ११९७,
[२], १८२ [२], १९६ १५०१ [४], १५०९, ०सयसहस्से शतसहस्रे १८१ [१] १५११ [१-३], १५१३ • सयसहस्सेसु शतसहस्रेषु ९३ [३]
स्वयम् १६७९ सम्मुच्छिमे सम्मूछिमम् १४८५ [७] सयं
, ११० गा. १२१ सम्मूछिमे १५१२ गा.
शतम् २०९ गा. १५७ २१६ ०सयं
,, १९३ [१], १३२७, सम्मुच्छिमेसु सम्मूछिमेषु ६६६ [३]
१६०४ [२] सम्मुच्छिमेहिंतो सम्मच्छिमेभ्यः ६३९ [८, सयंबुद्ध स्वयम्बुद्ध ११५, १२८
१३,१४], ६४१ सयंबुद्ध ० ,, ११४, ११५, १२७, सम्मुति सम्मति पृ. २१३ टि. ६
१२८ सम्मुदि " पृ. २१३ टि. ६ सयंभुरमणसमुदस्स स्वयम्भूरमणसमुद्रस्य सय शत२८[४], १७२,९२३,
१५५१ [१] २१६९ सयंभुरमणसमुद्दे स्वयम्भूरमणसमुद्रः सयग्घि शतघ्नी १७७, १७८[१],
१५५१ [४] १८८ सयंभुरमणे स्वयम्भूरमणः १००३ शयनम् ८५३
[२], १५४८ सयपत्ते शतपत्रम्
,, -द्वीपः समुद्रश्च १००३ सयपुफिदीवरे शतपुष्पेन्दीवरम् ४९ गा.
__ [२] गा. २०६ ४१ सया
शतानि २११ गा. १६३ ० सयपुहत्तं शतपृथक्त्वम् १२८४, सया
,, २०६ [२] गा. १५५ १२९३, १२९९, १३८३ •सयाई ,, २०२ [१], २०६ सयरी वृक्षविशेषः ४१ गा. १७
[२] गा. १५५, २१०, ०सयवग्गपलि- शतवर्गप्रतिभागः
६०१, १५२९ [१], भागो ९२२
१७०० [१०], १७०२ सयवत्त शतपत्र १७८ [२],
[८, ९, १८, २१, २२, १९५ [१]
२४-२७, ३६, ३८, ४३, सयसहस्स शतसहस्र १६९,१८० [१],
४५, ५८], १७०३ [१], १८१ [१], १८२ [१]
१७३७ [३], १७३९[२] सयसहस्सा शतसहस्राणि ५८ [२]
.सयाणं
शतानाम् २०५ [१-२] ०सयसहस्सा ,, ६८ [४], ७५ [४], सयातिं स्वकानि पृ. ४१७ टि. ४ १८१ [१], १९३ [१] सरडा
सरटाः ८५ [१] सयसहस्साई ,, ३४ [४], १७४ गा. सरपंतियाण सरःपङिकानाम् ८८५ १३६, १८७ गा. १४०- सरपंतियासु सरःपतिकासु १५१, १४१
१६०, १६३ तः १६६, ० सयसहस्साई ,,३१[४],५५[३],१९६
१७५
सयणं
___ ५१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934