Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 828
________________ मूलसद्दो महिड्डिए बीयं परिसिटुं-सहाणुक्कमो सक्कयत्थो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो १५४५ तः १५४७ [१], महासोक्खे १५४८ तः १५५०, महाहिमवंत. १५५१ [१, ४, ६, ९] महाविदेहेसु महाविदेहेषु ८२, १५४ महिड्डिया महाविदेहेहिं महाविदेहैः ९७ [१] महाविमाणस्स महाविमानस्य २११ महाविमाणा महाविमानानि पृ. ७७ टि. २ महावीर महावीरम् १ गा. १ महिड्डिया महावेदणतरागा महत्तर वेदनाः ११२८, ११४४ ० महिड्डिया महासक्खा महाश्वाक्षाः पृ. ५६ टि.१६ महासक्खे महाश्वाक्षःपृ. ४४३ टि.१ महिड्डीए महासरीरा महाशरीराः ११२४, ११४२ महासुक्क महाशुक्र १९६, ६२२, महिड्डीया पृ. १६९ टि. १ महासुक्क. , १५३२ [५], महिड्डीया २००३, २०५१, २०५२ [१] महासुक्कदेवा महाशुक्रदेवाः ७०८ महासुक्कदेवाणं महाशुक्रदेवानाम् ५९५ ० महिड्डीया महासुक्कवडेंसए महाशुक्रवतंसकः २०३ [१] महासुक्कस्स महाशुक्रस्य २०४ [१] महित्थे महासुक्का महाशुकाः २०३ [१], पृ. ४५ टि. २ महिया महासुकाणं महाशुक्राणाम् २०३ [१] महासुक्के महाशुक्रः २०३ [१२] महिया महाशुक्रे २२३ [७], ३३४, ४२१ [१३], महिल १८३६ महिस महासते महाश्वेतः-वानव्यन्तरेन्द्रः महिसा १९४ गा. १५३ महिसी महासोक्खा महासौख्यौ १७८ [२] महासोक्खा महासौख्याः १७७, १७८ ० महिसीओ [१], १८८, १९६, • महिसीणं २०७, २१० ३११ सक्कयत्यो सुत्तंकाइ महासौख्यः २१६९ महाहिमवन्त १०९८ महर्द्धिकः १९७ [२]] महर्द्धिकाः १७८ [१], १८४ [१], १८६ [१], १८२ [१], १९० [१], १९५ [१], १९९ [१], ११९१ तः ११९४ महर्द्धिको १८९ [२], १९५ [२] महर्द्धिकाः ११९१, ११९२, ११९४, ११९७ महर्द्धिकः १८२ [२], १८३ [२], १८६ [२], १९० [२], २१६९ महर्द्धिकौ १७८ [२], १८१ [२], १९३ [२] महर्द्धिकाः १७७, १८१ [१], १८२ [१], १८८, १९६, १९७ [१], २०५ [१] , पृ. २८६ टि. ४-५-७.८-१० गुच्छवनस्पतिविशेषः ४२ गा. २२ महिका २८ [१], पृ. १४ टि. १ महितानि १७७, १७८ [१], १८८ मिथिला १०२ गा. ११४ महिष १९६ महिषाः ७२ महिषी-राज्ञी १९९ [२] ,-कासरी ८५३ महिष्यः-राइयः १९९[१] महिषीणाम् - राजीनाम् १७८ [१], १७९ [२], Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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