Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 853
________________ ३३६ मूलसद्दो .वत्तियाए सक्कयत्थो सुत्तंकाइ वचनम् ०वत्तियाण वत्तेति वस्थ वयं वदन् ८५७, ८९७ वाक्सुखता पृ.३६६टि.२ वयः १७८ [१२], व्रतम् १४२० [६] वाक् ८३३, ८३६, ८५४ वर १ [गा. १], १९६ वर० वत्थवस्थाई +वत्थुल र्पण्णेवणासुत्तपरिसिट्ठाई सक्कयस्थो सुत्तंकाइ । मूलसहो प्रत्ययया १६३१ वयणे प्रत्ययायाः प्रत्ययायां वा .वयणे १६५४ वयमाणे प्रत्ययानाम् १६६३ वयसुहया वर्तयन्ति २१५३ [४] वस्त्र १७७, १७८ [१.२], १८८, १९६, १९७ तः .वयू २०१ सूत्राणां द्वितीय- वर कण्डिका वस्त्र -वस्त्रनामाभिधद्वीप. वरकणगणिहस समुद्रार्थे १००३ [२] गा. वरकणगणिहसे वरगति वस्त्र पृ. ६५ टि.६ वस्त्राणि १७८ [१.२] वरगंध वस्तुल:-वनस्पतिविशेषः ४३ गा. २५, ४९ वरणा गा. ३९ +वरणा वस्तुलः ४२ गा. २० वरपसण्णा वस्तु ९६१ [१] वरपुरिसवसणे वस्त्रम् १२२० ० वरमल्लदामे वर्धमान-शरावसम्पुट १७७ वरवारुणी वनमाला +वरसामग वर्ण पृ. ७ टि. २ वर्णाः १८७ गा. १४६ वरसीधू वर्णादिभिः ४६४ [१] वराडा वर्णेन १२२९ त्रीन्द्रियजीवाः पृ. २७ वराह टि. १० वराहरुहिरे वप्रेषु-केदारेषु १५१, वराहा १६०, १६३ तः १६६, वरुट्टा वरकनकनिकष १८७ गा. १४५ वरकनकनिकषः १२३० वरगतिम् २१७० [२] गा. २३० वरगन्ध १७७, १७८ [१], १८८, १९६ शिल्पार्थविशेषः १०६ वरणेषु १०२ गा. ११५ वरप्रसन्ना १२३७ वरपुरुषवसनम् १२३० वरमाल्यदाम १२३१ वरवारुणी १२३७ वरश्यामाकः-धान्यविशेषः ५० गा. ४३ वरसीधु १२३७ वराटा:-द्वीन्द्रियजीवाः वत्थुले वत्थं वत्थे वडमाण ०वनमाला ०वना वन्नादीहिं वनेणं वप्पाया वप्पिणेसु वयजोगपरिणामे वाग्योगपरिणामः प्र.२२९ घरुणा वरुणे वराह १९६ वराहरुधिरम् १२२९ वराहाः शिल्पार्थविशेषः पृ. ३८ टि.५ , पृ. ३८ टि. ५ वरुणः-द्वीपः समुद्रश्च १००३ [२] गा. २०४ रोमपक्षिविशेषः ८८ वनस्पतिविशेषः ५४ [१] गा. ४९ वयजोगं बाग्योगम् २१७४ [३], पृ. ४४४ टि. २ वाग्योगी १३२३ वचनम् ८५७ वरेल्लग. वलई बयजोगी .वयणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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