Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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विगे
३४६
पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई मूलसहो
सक्कयत्थो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो सक्कयत्थो सुत्तंकाइ विउबणया विकुर्वणता-विकुर्वणा विगी
वृकी पृ. २११ टि. ६ २०३३, २०३४ [१],
धुकः पृ. २११ टि. ४, २०३५
पृ. २१२ टि.६ विउन्चंति विकुर्वन्ति २०५२ विग्गण विग्रहेण २१५३ [२], [२,४,५]
२१५९ [२] विउविता विकुर्व्य २०५२ [२,४,५] विग्गणं ,,२१५६ [२], २१५७, विउविय- विकुर्वित १८८
२१६६ [१] विक्खंभ. विष्कम्भ ८२, १५४५, विग्गहो विग्रहः २१५८ [१]
१५४७ [१], १५४८, विचित्त विचित्र १८८ १५५१ [१,४,६,९], विचित्त. ,, १७७, १७८ [१-२], २१५३ [१],२१५६[१],
१८८, १९६ २१५९ [१],२१६६ [१] विचित्तपक्खा विचित्रपक्षाः-चतुरिन्द्रियविक्खंभसूई विष्कम्भसूचिः ९११[२]
__ जीवाः ५८ [१] ९१२ [२], ९१८ [१], विच्छिण्णा विस्तीर्णाः २०७ ९२०, ९२२ तः ९२४
विस्तीर्णी २०६[१] •विक्खंभेणं विष्कम्भेण १९७ [१], विच्छिण्णे विस्तीर्णः १९८[१], २०६[१], २११, २१६९
१९९ [१], २०१ [१], विगतजीवकलेवरेसु विगतजीवकलेवरेषु ९३
पृ. ७३ टि.२ विगयमिस्सिया विगतमिश्रिता-भाषामेदः
विच्छता वृश्चिकाः ५८ [१] ८६५
विजयेषु-देवलोकेषु १४८ विगलिंदिए विकलेन्द्रियः
विजय
विजय-देवलोक ६२२ विगलिंदिएस विकलेन्द्रियेषु१०४३[२], विजय ,, ४३६ [१-३], ६०४, १४३९
७२३, १०३६, १०३९, विगलिंदिय विकलेन्द्रिय८९२, १८८९
१०४१ [८], १०४३
[५], १०४५ [१], विगलिंदिया विकलेन्द्रियाः८९१,८९५,
१०४६[१,७,८],१०४७ १९७३ गा.२२०, २०५४
[३], १०४८ [४], गा. २२६
१०४९, १०५० [३], विगलिंदिया विकलेन्द्रियौ १८७६ [२]
१०५४[१], १०५५[४], विकलेन्द्रियाः १८७१ [१],
१०६३, १८५१ २०५०, २०६५
विजयवेजयंतीपडाग विजयवैजयन्तीपताका विगलिंदियाण विकलेन्द्रियाणाम् १९००
१९५ [१] [२] विजया
विजयाः-विजयनामाभिधविगलेंदिया विकलेन्द्रियाः ८९०
द्वीप-समुद्रार्थे १००३ [२] विगलेंदियाणं विकलेन्द्रियाणाम्
गा. २०५ १६४१, २१५०
,, -देवविशेषाः१४७[१] • विगिण्णा विकीर्णानि पृ. ५६ ट्रि, ७ । विजये विजयः २११
विजएसु
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