Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
________________
३५२
मूलसद्दो
वीही
वुच्चइ
वुच्चति
Jain Education International
पणवणासुत्तपरिसिट्ठाई
सक्कत्थो
सुत्तकाइ
५० गा. ४२
व्रीहिः उच्यते ४४१, ४५६ [१],
४८९ [१], ४९७, ५३१ [9], ८३१, ८६८, ११२४, ११३०, ११४४, १२२०, १२५३, १२५५ उच्यते ४३९ तः ४४ १, ४४३ तः ४४८, ४५२, ४५५ [१-३], ४५७[१], ४५९ [१], ४६२ [१], ४६४ [१], ४६६ [3], ४६७ [१], ४६८ [१], ४७० [१], ४७३ [१], ४७४ [१], ४७५ [१], ४७७ [१], ४८१ [१], ४८२ [१], ४८३ [१], ४८५ [१], ४८७ [9], ४९० [१], ४९१ [9], ४९३ [१], ४९५ [7], ५०३ तः ५०५, ५०० तः ५११, ५१३ तः ५१५, ५१९, ५२५ [१], ५२६ [१], ५२९ [१], ५३० [१], ५४३ [१], ५५७ [१], ८३१, ८६७, ८६८, ९९४, ९९६, ९९८, १०४१ [६], ११२४ तः ११२६, ११२८, ११२९, ११३२, ११३३ [१], ११३८, ११४२, १२१५ [१-३], १२२०, १२२२, १२५२, १२५५, १४४४, १४५९, १५७३, १६०४ [१], १७४१, १९२८, १९२९, १९३१, १९३२ [१], १९५४, १९५७ [१], १९५८, १९६०,
मूलसद्दो
वुच्चंति
इयं
वेयासु
वे इस्संति वेइंसु
वे उब्विए
• वेउच्चिणो
उब्विय
aroor • + वेउध्विय
सक्कत्थो
सुत्तंकाइ
१९६३, १९६४, २०४६,
२०५१, २०५२ [9], २०७८, २०८० २०८३, २११७ [१], २१६९, २१७६, पृ. २७५ टि. ६ उच्यन्ते १६०४ [१],
१६५५
वेदिकान्तः १५५१ [१]
१४८
वेदिकासु वेदयिष्यन्ति
९७१
अवेदिषुः - वेदितवन्तः
९७१
वैक्रियम् ९०१, ९०२, ९०६, ९०८, १०७२, १४७५
वैक्रिया:- वैक्रियशरीराः
१९६
वैक्रिय १५६५, १५६६, १७०२ [१४] २१२२ वैक्रियः - समुद्वातः २०८५
गा. २२७
For Private & Personal Use Only
"3
वेव्वयमीससरीर- वैक्रियमिश्रशरीरकायateurit प्रयोगिणः १०७७,
१०७८, १०८०, १०८३ asarमी- वैक्रियमिश्रशरीर काय प्रयोगः सरीरकायप्पओगे १०६८, १०७०, १०७४ वेच्वियमीसासरीर वैक्रियमिश्रशरीर काययोगम् कायजोगं asooreमुग्धा
२१७३ [२] वैक्रियसमुद्घातः २०८६,
२०८९, २०९० [१], २०९१ [२] २०९२, २१४७ तः २१५२, २१६५
Masoor समुग्धा वैक्रियसमुद्घातेन २१२५
तः २१२७ [१], २१२८ [२], २१३०, २१३१,
२१५९ [१]
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934