Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 873
________________ ३५६ मूलसहो • वेमाणियस्स धेमाणिया पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई सक्यत्यो सुत्तंकाइ । मूलसहो वैमानिकस्य १६३५[६], २१६४ चेमाणिया वैमानिकाः १३९, १४३, वेमाणियामो १४७ [२], १९६,२९०, ४३९, ४९९ [२],६५९, वेमाणियामो ६८९,७०१, ८०९ [२], वेमाणियाण ८११ [२], ८१३ [२], ८१५ [२], ८१७ [२], • घेमाणियाण ८१९ [२], ८२१ [२], वेमाणियाणं ८२३ [२], ८२५ [:], ८२७ [२], ८२९ [२], ८७६, ८८८ [२], ८८९, ९४६, ९६५[२], ९६६ [२], ९६७[२], ९६८ [२], ९७१, ९९८, ११४५,११८६तः११८८, ११९०, ११९७, १२०७ [२],१४१६[२],१५२० [५],१५८६ [२], १६४९ [२], १६६९, १६७३, १६७७ [२], १७६१, १७६५ [1], १७७३ [२],७८८[२],१७९४ [२], १८२९, १८५८, १८६०, १८६४, १८६९ [१], १८७७, १९५३, १९६२,२०४६, २०५०, २०५९, २०६२, २०६५, २०६८,२०७१,२०८४, २१२४[३], २१४४[२] वैमानिकाः १५९३, पृ. ३५३ टि. २ वैमानिकाः ४५४, ६७४, ६८३, १०८४, ११४८, ११५४, १४०४, १९३५, १९७२,१९७३ गा.२२०, | .वेमाणियाणं १९७९,२०३७, २०७६, सकयत्थो सुत्तंकाइ २११५ [१], २१३२ वैमानिको १८७८ [३] वैमानिकात् १५९७ [२], १६०१ ,, १५८९ [४] वैमानिकानाम् ६७४, ११८८, पृ. ३९७ टि. १ " ७५२, ११४४ ,, १९६, १९७ [१-२], १९८ [२], ४०७[१-३], ६८६, ९२४, ९५९ तः ९६४ सूत्राणां द्वितीय कण्डिका, १००८ तः १०१२ सूत्राणां द्वितीयकण्डिका, १०१४ [२], १०१५[२],१०१६ [२], १०२३, १०२९,१०५७, १०८८, १०८९,११६९ [१], ११८०, ११८६, ११९०, ११९९ [२], १५७५ तः १५७९ सूत्राणां द्वितीयकण्डिका, १५८०, १६०६ [२], १६१६, १६१८, १६१९, १६२७ [२], १६३६, १६३८ [२], १६४१, १७५४[२], १७६९ [२], १७७५ [२], १७७९, १७८४[३], १७८७[२], २०३९, २०४६, २०४८, २०९२, २०९७ [२], २०९९[२],२१०० [२], २१२३ [३], २१२४[४], २१३४ [२], २१३७ [२], २१४१ वैमानिकानाम् ४०७[२]. ६३८, ७६२, ७७१, बेमाणिया माणिवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934