Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 870
________________ कत्थो सुत्तंकाइ मूलसद्दो asoareमुग्धा वैक्रियसमुद्वातः २११७ [१] darurrey वैक्रियशरीर केषु ९२० aroor सरीरका - वैकियशरीरकाययोगम् जोगं २१७३[२] doaसरीरका - वैक्रियशरीर काय प्रयोगिणः १०८०, १०८३ प्पओगी १०७४ वेड व्वियसरीर- वैक्रियशरीर कायप्रयोगः कायओगे १०६८, १०७०, asarसरीरगा वैकियशरीरकाणि ९२२ dearerणाम वैक्रियशरीरनाम १७०९ वेड व्वियसरीर- वैकियशरीरनाम्नः १७०२ णामाए [११], १७३१ [५] asoareer वैक्रियशरीरका णि ९१० [२], ९११ [२] ९१२ [२] ९१४ [२], ९२० arooraatree वैक्रियशरीरस्य १५२७, १५५४, १५६६ ,, १५२८,१५२९ [१], १५३०, १५३१, १५३२ [१,६] वैकियशरीरम् १५५९, १५६३ [१] वैक्रियशरीराङ्गोपाङ्गनाम • वेड व्वियसरी रस्स व्वियसरी रं asoar सरीरंगोवंगणा मे asarसरीरा ashoorसरीरी वेव्वियसरी रे बीयं परिसिद्धं - सहाणुकमो मूलसद्दो आ. ९ [२]-२३ १५६५ वैकियशरीरिणः १९०३ [४] वैक्रियशरीरम् १५१४, १५२१, १५४४ [१] वैक्रियशरीरे १५३९ [२,४] • वे व्वियसरी रे वैक्रियशरीरम् १५१४, १५१५ [१-३], १५१६, १५१७ [२], १५१८ [१-५], १५१९ [१-४], १५२० [२३], १५२२, Jain Education International १६९४ [४] वैक्रियशरीराणि ९१२[२], asarra उब्विया asari asव्वियाणं उब्वियाति वेइ चेति वैजयंत वैजयंता वैजयंती पडाग वैजयंते चेढगा वेढला वेढली वेणइया वेणु वेणुदाि वेणुदली For Private & Personal Use Only सक्कत्थ सुकाइ १५२३ [१-२], १५२४ [१], १५२५, १५२६ [१२,६] वैकियस्य ३५३ वैक्रियाणि ९१० [२], १५४४ [३] ९१२ [४], ९१८ [२], १२२ ९११ [४] वैक्रियाणाम् ९१६ [२], ९२१ [२] वैक्रियाणि पृ. २२५ टि. ३ वेदयते ९७१ १६८१ [१], १६८३, १६८४ [१], १७७३ [१], पृ. ३९टि. ३ वेदयन्ति वैजयन्त - देवलोक ४२६ [१-३], ६०४, ६२२, ७२३, १०३६, १०३९, १०४१[८],१०४३[५], १०४५ [१], १०४६ [१, ७-८], १०४७ [३], १०४८ [४], १०४९, १०५० [३], १०५२, १०५४ [१],१०५५[४], १०६३, १८५१ 'वैजयन्ताः- देवाः १४७ [१] वैजयन्तीपताका १९५ [१] वैजयन्तः २१० ग्राहविशेषः पृ. ३० टि. १ " ६५ पृ. ३० टि. १ वैणकिया - लिपिभेदः १०७ वेणुः ५४ [८] गा. ९२ वेणुदालि:- सुपर्णकुमारेन्द्रः १८७ गा. १४४ वेणुदालि:- सुपर्णकुमारेन्द्रः १८६ [२] www.jainelibrary.org

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