Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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३३४
मूलसद्दो
वणस्सह
• वणस्सइकाइए वणस्स इकाइए
पर्णवण्णासुप्तपरिसिट्ठाई
सकयत्थो
सुकाइ
वनस्पति ६७०, ११५२,
१४३१ [१] वनस्पतिकायिकः १३०८ वनस्पतिकायिकेषु
६६८ [३] aणस्सइकाइयए वनस्पतिकायिकै केन्द्रियेषु गिदिए
६६८ [३]
१४७९
सकाइए - वनस्पतिका थिकै केन्द्रियौदागिंदयओरालिया रिकाणि वणस्सइकाइय- वनस्पति कायिकौदारिकओरालियसरी रस्स शरीरस्य १५०६ [१] ० वणस्सइका- वनस्पतिकायिकस्य
इयस्स वणस्सइकाइया
१०६० वनस्पतिकायिकाः १९, ३५, ५५ [३], २१४ [५], २३२, २३६, ३१९ तः ३२१, ६१८,
६५३
• वणरसइकाइया वनस्पतिकायिकाः ३५ तः
३७, ५४ [१], १६२, २४६, २४७, २५०[६],
३३४, १४११
• वणस्सइकाइयाण वनस्पतिकायिकानाम्
१३०३
arashtri २३४, २३५ [६],
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२३६, ७६६, २१३३[३]
० वणस्सइकाइयाणं, १६० तः १६२, २४१, २४२, २४६, २५१ वणस्सति वनस्पति aणस्सतिकाइया वनस्पतिकायिकाः
७४३ ३५,
२३२, १७५९ [२], १९५७ [१] • वणस्स तिकाइया २५० [६], ३३४ वणस्पतिकाइयाओ वनस्पतिकायिकात्
"
पृ. ३५३ टि. १
२५० [६]
• वणस्सतिकाइयाण वनस्पतिकायिकानाम्
मूलसद्दो सकयत्थो सुत्तकाइ वणस्सतिकाइयाणं वनस्पतिकायिकानाम्
२३२, २३३, १०४९
० वणस्सतिकाइयाणं
• वणरसतीसु
वण्ण
वण्ण ०
+ वण्ण
Toursस्सामि
वण्णओ
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""
२५० [६], २५१ वनस्पतिषु ६६८ [६] वर्ण ८ [१], ९ [१-५],
१० [१.२], ११ [१-५], १२ [१.८], १३ [१-५],
१८८, १९६, ५०४, ५५७ [१], ५५८, ११२३ गा. २०९, ११२६, ११३७,
१२१८ गा. २१०
वर्ण १८७, ३३३, ४४४ तः ४४८, ४५२, ४५५ [१-३], ४५६ [१], ४५७ [१], ४५८ [7], ४६२ [१], ४६६ [१], ४६७ [१] ४६८ [१], ४७० [१], ४७३ [१], ४७४ [१], ४७५ [9],
४७७ [१], ४८१ [१],
४८२ [१], ४८३ [१],
४८५ [१], ४८७ [१], ४८९ [१], ४९० [7], ४९१ [१], ४९३ [१], ४९५ [१], ४९७, ५१०,
५१९, ५२४, ५२५, ५४५
[१], ५४७ [१], ५४८ [१], ५५४ [१], ५५७ [१], ५५८, ११३३ [१] वर्णे ८२९ [२] गा. १९१ वर्णयिष्यामि १ गा. ३ वर्णतः ९ [१५], १० [२], ११ [१-५], १२ [१४], १३ [२], ८७७ [<], १७९८ [२], १८०१, १८०६ [१]
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