Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 850
________________ मूलसद्दो ०वड़ा बीयं परिसिटुं-सहाणुक्कमो सक्कयत्यो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो सक्कयत्थो सुत्तंकाइ वृद्धी १९८१ गा. २२२ ०वणप्फइकाइयाणं वनस्पतिकायिकानाम वणप्फइकाइए वनस्पतिकायिकः ४४७, २३७, २४० [६], २४२, १३१८, १४५४ २४५ [६-७], २४६ तः ० वणप्फइकाइए ,, १३० १,१३०९, २४८, ३६६ [१-३], १३१८ ३६७, ३६८ [१-३], वणप्फइकाइएणं वनस्पतिकायिकेन १००२, ४४७, ४७२, ५८०, १००३ [१] ६८०, ९१७, ९८६, वणप्फइकाइएहिंतो वनस्पतिकायिकेभ्यः ६५० .१०२१ [४], १०६४, १०७२, ११७८, १४९४ वणप्फइकाइओ वनस्पतिकायिकः १४२९ [१], १८१३, १८८५ वणप्फइकाइय वनस्पतिकायिक २३९, [२], १९१९, १९४६, २४३,२४९,१५८९ [३] २०९९ [२], २१०० वणप्फइकाइय० , १२९८, २१०० [२] [२], २१२४ [३] घणप्फइकाइय- , २३८,२४८ वणप्फइकालो वनस्पतिकाल: १२७२, प्फइकाइयए- वनस्पतिकायिकै. १३२४,१३२९,१३७५, गिदियओरा- केन्द्रियौदारिक १३८०, १३९० लियसरीरे शरीरम् १४७७ ० वणप्फईसु वनस्पतिषु १४२५ [३] वणप्फइकाइयएगि- वनस्पतिकायिकैकेन्द्रिय- वणप्फतिकाइया वनस्पतिकायिकाः २३६, दियतेयगसरीरे तैजसशरीरम् १५३७ ६३२, ६५० [७] वणप्फइकाइयत्ते वनस्पतिकायिकत्वे १०४१ ०वणप्फतिकाइया ,, ०वणप्फति- वनस्पतिकायिकानाम् वणप्फइकाइयस्स वनस्पतिकायिकस्य ४४७, काइयाण ११६१ १०३२ [१], १५४६ वणप्फतिकाइयाणं ,, १०२७ [२], १०४९, वणप्फइकाइया वनस्पतिकायिकाः २३३, १०८० २३४, २३५ [६], ०वणप्फति२४२, ४३९, १२८८, काइयाणं ३६६ [२] १४०२, १४१६ [२], वणप्फतिजीवा वनस्पतिजीवाः ३३४ १९३१, २१२८ [२], वणमाल वनमाला १७८ [१.२], पृ. ३९५ टि. ७ १८८, १९६ ०वणप्फइकाइया वनस्पतिकायिकाः ३७, वणमाला १८८ ३८,५३ गा. ४६, २३७, वणमाला-० १८८ २३९, २४० [६], २४१, ०वणमाला वनमालानि १७७, १७८ २४३, २४४, २४५ [१], १८८ [६-७], २४८, २४९, वणयर-० वनचर-व्यन्तर १९७३ २५१, ३३४, ९४० [२], गा. २२० १२०३ [४], १२१० वणराई वनराजिः १२२७ [२], १५८३ [३] । वणलय वनलता ४४ गा. २७ " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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