Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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३३२
पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई मूलसद्दो
सक्कयत्थो सुत्तंकाइ । मूलसहो वसंठाणपरिणया वृत्तसंस्थानपरिणताः ११
[१], १२ [४] वट्टा
वृत्ताः १६७ तः १७४ वृत्तानि १७७, १७८ तः १८५ सूत्राणां प्रथमकण्डिका, १८८, १८९
[१], १९० [१] +वद्या वर्तेषु १०२ गा. ११६ वागा रोमपक्षिविशेषः पृ. ३४
टि. ६ वट्टि वर्त्ति १७७, १८८, १८९
[१] वट्टिया
वर्तिता ५३ गा. ४५ वट्टी वर्तिः ५३ गा. ४५ वहे वृत्तः
२१६९ वृत्तम् वडगरा
मत्स्यविशेषः वडा वडिए पतितः ४४०, ४८१[३], वडिसए
४९० [३],४९५[१,३], वडिंसगा
४९६,५४८ [१, ३] ० वडिता पतिताः ४५३, ४५४ .वडेंसए . वडिते पतितः ४४०, ४४१,
४४३ तः ४४८, ४५२, ४५५ [१-३], ४५६ [१-३], ४५७ [१, ३], वडेंसगा ४५९ [१, ३], ४६२ [१, ३], ४६४ [१२], ४६६ [१, ३], ४६७ [१, ३], ४६८ [१,३], ० वडेंसगा ४७० [१, ३], ४७३ वडेंसया [१,३], ४७४ [१, ३], ४७५ [१, ३], ४७७ [१, ३], ४८१ [१,३], ० वडेंसया ४८२ [१, ३], ४८३ [१, ३], ४८५ [१.३], वङ्कमाणए ४८७ [१, ३], ४८९ । वडिजति
सक्कयत्थो सुत्तंकाइ [3, ३], ४९० [१,३], ४११ [१, ३], ४९३ [१-३], ४९७, ४९९ [२], ५०४, ५०५,५.०८ तः ५११, ५१३तः५१५, ५१७ तः ५१९, ५२१तः ५.२३, ५२५ [१], ५२९ तः ५३३ सूत्राणां प्रथमतृतीयकण्डिके, ५३५तः ५३९ सूत्राणां प्रथम-तृतीयकण्डिके, ५४१ [१, ३], ५४२ [१,३], ५४३ [१,३], ५४५ [१,३], ५४७ [१, ३], ५५१ [१, ३], ५५२ [१, ३], ५५४ [1, ३], ५५५ [१, ३], ५५६ [१, ३],
५५७ [१, ३], ५५८ वतंसकः २०१ [१] वतंसकाः २०१ [१] वटः४१ गा. १६ वतंसकः १९७ [१], १९९ [१], २०० [१], २०२ [१], २०३ [१], २०४ [१], २०६ [१] वतंसकाः १९. [१], १९९ [१], २०२ [१], २०३ [१], २०४ [१],
२०५ [१], २०६ [१] , २०२ [१] ,, १९७ [१], १९८ [१], १९९ [१], २००
[१], २०६ [१] , २०१ [१]] वर्धकिरत्नत्वम् १४६७ वर्धमानकः २०२७ वृध्यन्ते ५३४, ५४९
वडे
वङ्कइरयणत्तं
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