Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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३२७
मूलसहो
सक्कयत्थो सुत्तंकाइ १८०० [२-३], १८०१,
१८०९ रूक्षाः-रूक्षस्पर्शाः १२४१ रूक्षः-रुक्षस्पर्शः ५५३
लुक्खे
रूक्षेण ९४८ गा. २०० रूः-रूक्षस्पर्शः ५०४, ५५० [१], पृ. १५४ टि.
घीयं परिसिटुं-सहाणुकमो
सक्कयत्थो सुत्तंकाइ मूलसहो • लंतगेसु लान्तकयोः १५३२ [५],
२०५२ [१] लंतयस्स लान्तकस्य २०३ [१] • लुक्खाओ लंतया
लान्तकाः १४४ [१] लंभणमच्छा मत्स्यविशेषः ६३ • लुक्खे लाअ-० गोमयोपलेपन १७७,१७८ लुक्खेण
[१], १८८ • लुक्खेहिं +लाढा लाटासु १०२गा.११६ लाभविसिट्रया लाभविशिष्टता १६८५[१] लाभंतराए लाभान्तरायः १६८६ +लुणय .लायण्णत्ताए लावण्यतया २०५२ [२] लेक्खविहाणे लालाविसा लालाविषाः-सर्पमेदः ७९ लेप्पारा लावगा लावकाः-रोमपक्षिणः ८८ लावण्णे लावण्यम् १६८४ [१] लेमूलमच्छा लित्त
लिप्त १६७ तः १७४ लिवी लिपिः
लेसणया लिवीए लिप्याः
१०७ लेसा लुक्ख रूक्ष-स्पर्शविशेषः ५२५
[१], ५४७ [१], ५४८
[१],५५१ [१] लेसाओ • लुक्खत्तगेण रूक्षत्वेन ९४८ गा. १९९ लुक्खफास० रूक्षस्पर्श ४४०, ४४१ लुक्खफासणामे रूक्षस्पर्शनाम १६९४
लेसागती
[१२] लेसापरिणामे लुक्खफासपरिणता रूक्षस्पर्शपरिणताः८ [४], ,
९ [१-५], १० [१-२], ११ [१-५], १२ [१. लेसेंति
३,५,६,८], १३ [१५] ० लेस्सं लुक्खफासपरिणया रूक्षस्पर्शपरिणताः १२[४] लुक्खफासपरिणामे रूक्षस्पर्शपरिणामः ९५५ लेस्सा लुक्खफासाइं रूक्षस्पर्शानि ८७७ [१३] लुक्खबंधणपरिणामे रूक्षबन्धनपरिणामः ९४८
लुक्खयाए रूक्षतया ९४८ गा. १९९ ०लेस्सा लुक्खस्स रूक्षस्य ९४८ गा. २०० लेस्साए लुक्खाई रूक्षाणि-रूक्षस्पर्शानि
लेस्साए
१८०० [१] ० लेस्साए ०लुक्खाई
, , ८७७ [१४], ! लेस्साओ
लेसाए
तृणविशेषः ४७ गा. ३६ लेख्यविधानानि १०७ लेप्थकाराः-शिल्पार्याः
१०६ मत्स्यविशेषः पृ. २९ टि.
१० श्लेषणता ११२० लेश्या २ गा. ५ लेश्यया १७७, १७८
[१-२] लेश्याः १२०५, १२१९, १२५०, १२५६, १२५७
[१.२, ७] लेश्यागतिः ११०५ लेश्यापरिणामः ९२६ लेश्यासु १२०४, १२०५,
१२५८ [-]] लेशयन्ति २१५३ [४] लेश्याम् १२२०तः१२२५,
१२५१ तः १२५५ लेश्या २१२ गा. १८०, १२५९ गा.२११,१८६५
गा.२१९ लेश्या:-लेश्यायुक्ताः २५५ लेश्यया १८८, १९६ लेश्यायाम् ११३३ [२] लेश्ययोः ११३३ [१] लेश्याः ११५६ तः११६०,
लेसासु
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