Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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३२६
मूलसद्दो रोम
पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई सक्यस्थो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो रोम-म्लेच्छ जातिविशेष लयाओ
ललंत
लवणसमुद्दे
"
रोमग रोयए रोरुए रोवेइ रोसग रोहिणीया रोहियमच्छा रोहियंसे
लघणे
सक्कयत्यो सुत्तंकाइ लताः ललत् पृ. ६५ टि. १ लवणसमुद्रः १००३ [२] लवणसमुद्रे १०९८ लवणः-समुद्रः १००३
[२] गा. २०४ लवणोदकम् २८ [१] लवङ्गवृक्षः ४८ गा. ३८ लघुक-स्पर्शविशेष १८०६
रोमक-,,पृ.३६ टि.२२ रोचते ११० गा. १२३ रौरवः
१७४ रोचते पृ.३९ टि.३ म्लेच्छजातिविशेष ९८ त्रीन्द्रियजीवाः ५७ [१] रोहितमत्स्याः ६३ तृणविशेषः ४७ गा.३५
लवणोदए लवंगरुक्खे लहुआ
लउए लउस
वृक्षविशेष ४१ गा. १८ लकुश-म्लेच्छजातिविशेषः
T०लक्ख लक्खणंलक्षणं
लक्खारसे लट्ठदंता
लघुकाः-स्पर्शविशेषाः५४६ लहुय
लघुक-स्पर्शविशेष ९८१ [१], ९८२,९८५[८-९],
९८७ [३-४], १८०९ लहुयत्तं लघुकत्वम् ९९४ लहुयफास. लघुकस्पर्श ४४०, ४४१, लहुयफासपरिणता लघुकस्पर्शपरिणताः ८[४],
९ [१-५], १० [१-२], ११ [१-५], १२[१-२,
४.८], १३ [१-५] लहुया
लघुका:-त्रीन्द्रियजीवाः
पृ. २८ टि. ४ • लहुयाणं लघुकानाम्-स्पर्शविशेषा
णाम् लान्तकः २०२ [१२] लान्तके २२३ [६], ३३४, ४२० [१-३],
१४७०, १८३५ लंतग
लान्तक १९६, २१०, ६२२, ६३४, १०३५,
२०५१ लंतगदेवा लान्तकदेवा: २०२ [१],
लण्हा
हंतए
लक्षाणि ९१[४]गा.१११ लक्षणम् २११ गा.१६९ लक्षणम् ५४ [१०] गा.
१०१ लाक्षारसः १२२९ लष्टदन्ताः-अन्तर्वीपमनुष्याः श्लक्ष्णानि-मसृणानि १७७, १७८ [१], १८८,१९६, २०६ [१], २१०,२११ लताः ३८ गा. १२ लब्धिम्
८७५ लब्धिः १००६ गा.२०७
१०११ [१] लभेत १४२० [२-३], १४२१ [२], १४२५ [२], १४२८[२],१४३१ [२], १४३२ [२-३], १४३७ [२-३], १४४४ तः १४४९, १४५२, । १४५७, १४५९, १४६०, १४६३, १४६४, १४६८
लता
लद्धि लद्वी ० लद्धी लमेजा
०लंतगदेवा लंतगदेवाणं
२००२ लान्तकदेवानाम् २०२
[१], ५९४ लान्तकवतंसकः २०२[१]
लंतगवडेंस
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