Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 829
________________ मूलसद्दो सकयत्थो सुत्तंकाइ नकुलाः ८५ [१] " पृ. ३३ टि. ३ मण्डल १९५ [१] मण्डलिनः माण्डलिक माण्डलिकाः १४०६ गा. महुओ मण्डलिकत्वम् १४६६ मण्डलिका ३४ [१] मण्डलिकावातः ३४ [१] मण्डलिवातःपृ. १६ टि. ३ मण्डित १७८ [१.२] १७८ [१-२] मण्डूकी-वनस्पतिः ४९ गा. ३१२ पण्णवणासुत्तपरिसिटाई सक्कयत्थो सुत्तंकाइ । मूलसहो महिसीणं १८० [२], १८२ [२], मंगुसा १८८, १९० [२], मंगूसा १९५ [१], १९६, १९७ मंडल [२], १९८ [२] मंडलिणो महिसे महिषः ८४९, ८५२ मंडलिय. महिसो ,, पृ. २१२ टि. ४ +मंडलिय मधूकः ५४ [१] गा. ४९ +महुरतण तृणविशेषः ४७ गा. ३६ मंडलियत्तं महुररस मधुररस ० मंडलिया महुररस. ४४०, ४४१ मंडलियावाए महुररसणामे मधुररसनाम १६९४[११] मंडलिवाए महुररसपरिणता मधुररसपरिणताः ८ [३], मंडित ९ [१.५], १० [१-२], मंडित११ [५], १२ [१८], मंडुक्की १३ [१-५] महुररसपरिणामे मधुररसपरिणामः ९५४ मंडूए महुररसा मधुररसा-वनस्पतिः मंडओ ५४ [१] गा. ५० मंझ्यगती महुररसो मधुररसः पृ. २१७ टि. ३ महुरा मथुरा १०२ गा. ११६ मंडूसाण ० महुराई मधुराणि १८०६ [१], मंढ १८०९ +मंतिय महुरादीणं मधुरादीनाम् १७०२ [३१] मंथं महुरो मधुरः ८७७ [१२] मंदकुमारए महुसिंगी मधुश्शृङ्गी-वनस्पतिः ५४ [१] गा. ४९ मंदकुमारिया महेसक्खा महेशाख्याःपृ.५६ टि.१६ मंदर महेसक्खे महेशाख्यः पृ.४४३ टि. १ महेसरे महेश्वरः-वानव्यन्तरेन्द्रः । १९४ गा. १५२ मंदरपव्यय महोरगच्छायं महोरगच्छायाम् १११४ मंदरस्स महोरगा महोरगाः-उरःपरिसर्पवि शेषाः ७७, ८३ ,, -वानव्यन्तरदेवविशेषाः १४१ [१] महोरगाणं महोरगाणाम् १९२ मंस मंकुणहत्थी मत्कुणहस्ती मण्डूकः ११११ , पृ. २७१ टि. ८ मण्डूकगतिः ११०५, ११११ (१) पृ. २१९ टि. ८ म्लेच्छजातिविशेष ९८ तृणविशेषः पृ. २० टि. १ मन्थानम् २१७२ मन्दकुमारकः ८३९ तः ८४३ मन्दकुमारिका , मन्दर-मन्दरनामकद्वीपसमुद्रार्थे १००३ [२] गा. २०६ मन्दरपर्वत १०९८ मन्दरस्य १७९ [१], १८० [१], १८२ [१], १८३ [१], १९० [१], १९१ [१], १९७ [१], १९८ [१], १०९८ मांस १६७, १६८, १७० तः १७४ " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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