Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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रय
३२२
पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई मूलसद्दो सक्कयस्थो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो सक्कयस्थो सुत्तंकाइ
१९७ [१], १९८ [१],
२१०, १२१५ [२-३] रहणप्पभा रत्नप्रभा पृ. १९३ टि.१ .रमणिजातो रमणीयात् १९६ ० रइणो रतयः
रम्मग रम्यक
१०९८ रहत रचित
रम्मगवासेहिं रम्यकवः रइय
१८८ रम्मय
रम्यक १२५७ [१३]] ०रइया रचितानि १७७, १७८
रजस् [१], १८८ रयण
रत्न १७७, १७८ [१२], रतिकाः १९५ [१]
૧૮૮ •ई रतयः १८८ रयण.
रत्न
१गा.२ रक्खसा राक्षसाः १४१ [१],१८८ रयण
१९५ [१] रक्खसाणं राक्षसानाम् १९२ ०रयणत्तं रत्नत्वम् १४६७तः१४६९ रतण
रत्न
१९५ [१] रयणप्पभं रत्नप्रभाम् १९६३,१९६४ रतणप्पभा रत्नप्रभा
७७७ रयणप्पभा रत्नप्रभा ७७४, ७७५ रतणप्पभाए रत्नप्रभायाः १९५ [१], रयणप्पभाए रत्नप्रभायाः १६८, १७७, १९६, ७७७
१७८तः १८४ सूत्राणां रत्नप्रभायाम् ३३४
प्रथमकण्डिका, १८६ [१], रतणप्पभापुढविनेर- रत्नप्रभापृथ्वीनैरथिकेभ्यः
१८८, १८९ [१], १९० इएहिंतो ६५६ [२]
[१], १९३ [१], १९७ रतणवडेंसए रत्नवतंसकः १९८ [१]
[१], १९८ [१], २१०, .रतणामया रत्नमयानि १९६
२१७ [६], ७७७,८०४, रतिणामाए रतिनाम्नः १७०२ [१७
८०६, १९९८ रती रतिः १६९१ [५]
रत्नप्रभायाम् १४८, १६७ • रतीए रत्योः १७० [९] रयणप्पभाओ रत्नप्रभातः १४६८ .रतीणं
१७०० [१२] रयणप्पभापुढविणे- रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकः रक्त
१७८ [२] रइए १४४४, १४५७, १४५९ रत्तकणवीरए रक्तकरवीरकः १२२९ रयणप्पभापुढविणे- रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकेभ्यः रत्तचंदण रक्तचन्दन १७७, १७८ रहएहितो
[१], १८८ रयणप्पभापुढविणे- रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकरत्तबंधुजीवए रक्तबन्धुजीवकः १२२९ रइयखेत्तोववा- क्षेत्रोपपातगतिः रत्ता रक्ताः १८७ गा. १४७ तगती
१०९४ रत्ताभा रक्ताभाः
रयणप्पभापुढविणे- रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकपञ्चेरत्तासोगे
रक्ताशोकः १२२९ रइयपंचेंदियवे. न्द्रियवैक्रियशरीरम् रत्तुप्पले
रक्कोत्पलम् १२२९ उब्वियसरीरे १५१७[१-२],१५२३ [२] रमणिज रमणीय १७८ [२]
, १५१७ [२] • रमणिजसि रमणीये १२१५ [१] रयणप्पभापुढ- रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकस्य करमणिजाओ रमणीयात् १९५ [१], विणेरइयस्स
१४४४, १४५९
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