Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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३२३
बीयं परिसिटुं-सहाणुक्कमो मूलसद्दो सक्कयत्थो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो रयणप्पभापुढविणे- रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकाः । रयणीओ
१४१० [२], १४१४[२],
१९८४, २०५७ [२] रयणप्पभा. रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकाणाम् पुढविणेरइयाणं १६८, १५२३ [२],
१५२९ [२] ० रयणे रयणप्पभापुढ- रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकेषु विनेरइएसु
६७२ [२] रयणप्पभापुढ- रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकेभ्यः रययखंडाण विनेरइएहित्तो ६५५ [२], ६५६ [२]
.रवेण रयणप्पभापुढ- रत्नप्रभापृथ्वीनरयिकाः .रवेणं विनेरइया ६०, २१६ [२], ५६९,
६०७, ६४० रस रयणप्पभापुढ- रत्नप्रभापृथ्वीनरयिकाणाम् विनेरइयाणं २१०, ३३६ [१]
,, ३३६ [२-३] रयणवडेंसए रत्नवतंसकः २०६ [१] रयणं
रत्नम् .रयणं
१ गा. ३ रयणा
रत्नानि १४०६ गा.२१२ ०रयणामए रत्नमयः १९७ [१] रयणामयस्स रत्नमयस्य १८८, १८९
[१],१९० [१], १९३[१] ०रयणामया रत्नमयौ २०६ [१]
रत्नमयाः १९५ [१], १९८ [१], १९९ [१], २०५ [१], २०६ [१] रत्नमयानि १७७, १७८ [१], १८८, १९७ [१], १९८ [१], १९९ [१],
२०६ [१], २०७, २१० रयणि
रलि २११ गा. १६४ रयणिपुहत्तिया रलिपृथक्त्विकाः ८३ रयाण
रत्निम् रयणी
रत्नि: २११ गा. १६५, १५२९[३],१५३२ [७],
१५३५ । रसगुणे
सक्कयत्थो सुत्तंकाइ रत्नयः २११ गा. १६४, १२२९ [२-३], १५३२
[१, ५] रत्नी १५२९ [४-५],
१५३२ [६] रत्नम्-रत्ननामाभिधद्वीपसमुद्रार्थे १००३ [२] गा.
२०५ रजतखण्डानाम् ८८२ रवेण ,, १७८ [१-२], १८८,
१९६ रस ९ [१-५], १० [१.२], ११ [१.५], १२ [१८], १३ [१-५], ४४४ तः ४४८, ४५२, ४५५ [१-३], ४५६ [१], ४५७ [१], ४५९ [१], ४६२ [१], ४६६ [१], ४६७, ४६८ [१], ४७० [१], ४७३ [१], ४७४ [१], ४७५ [१], ४७७ [१], ४८१ [१], ४८२ [१], ४८३ [१], ४८५ [१], ४८७ [१], ४८९ [१], ४९० [१], ४९१ [१], ४९३ [१], ४९५ [१], ४९७,५०४,५१०, ५१९, ५२४, ५२५[१], ५३८ [१], ५४८ [१], ५५४ [१], ५५७ [१], ५५८, १२१८ गा. २१० रसतः ९ [१-५], १० [१], ११ [१५], १२ [१-५, ८], १३ [२-३],
१८०९, पृ. ७ टि. २ रसगुणान् १८०१
रसओ
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