Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 797
________________ २८० पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई मूलसहो सक्कयत्यो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो फुल्ला द्वीन्द्रियजीवाः पृ. २७टि. फुसह स्पृशति २११ गा.१६८ फुसमाणगतिपरिणामे स्पृशद्गतिपरिणामः ९४९ फुसमाणगती स्पृशद्गतिः ११०५,११०६ स्पृशन्ति ८८० फुसित्ता स्पृष्ट्वा १०००, ११०६, २१६८, २१६९ फूडिता स्फुटित्वा पृ. २१९ टि. ९ फुसंति सक्कयस्थो सुत्तंकाइ [१-२], १०३१ [१], १०३२ [१], १०३३ [२-३], १०३६ तः १०४०, १०४१ [२, ४, ७-८], १०४२, १०४३ [३, ५.६], १०४५[१], १०४६ [१,३,५,७०८], १०४७ [१-४], १०४८ [१-२,४], १०४९, १०५० [१-३], १०५२, १०५४ [२.४], १०५५ [१,३.५], १०५८, १०६३तः १०६५,१०६७ बद्धैः ९१८ [१] बद्धानि ९१० [१-२], ९११ [२], ९१४ [१], १०३०, १०४१ [१,३], १०४३ [1] बर्बर-म्लेच्छजातिविशेष +बउल बउस बकुलः ४० गा. १३ बकुश-म्लेच्छजातिविशेषः बगा बज्झारा बचीस बकाः शिल्पार्थविशेषःपृ. ३८टि.६ द्वात्रिंशत् २०६ [२] गा. बद्धेल्लगेहिं बन्द्वेल्लया बत्तीस० बत्तीसइम बत्तीसं बब्बर ९८ बत्तीसाए बत्तीसुत्तर बदरे द्वात्रिंशत् १९७ [२] द्वात्रिंशत्तमम् पृ.४१४५.२० द्वात्रिंशत् १९७[१],१०८३ द्वात्रिंशम् १७४ गा. १३३ द्वात्रिंशतः १९७ [२] द्वात्रिंशदुत्तर १६९ गुच्छवनस्पतिविशेषः ४२ गा. २० बद्धस्पर्शस्पृष्टस्य १६७९ बद्धस्य १६७९ तः १६८१ [१], १६८२ तः १६८४ [१], १६८५[१],१६८६ बद्धानि १००६ गा. २०८ ,, ५४ [८] गा. ८६.८७ बरहिणा बल +बल +बलदेव बलदेव बलदेवत्तं बलदेवा बलविसिट्टया बलागा बर्हिणाः ८८ बल १६८४ [१] बलदेवाः १४०६गा. २१३ बलदेवाः पृ. ३१९ टि. १ बलदेव बलदेवत्वम् १४६४ बलदेवाः १००,७७३ [२] बलविशिष्टता १६८५[१] बलाका:-रोमपक्षिविशेषः बन्दफासपुट्ठस्स बन्दुस्स बलाहए बलि ०बद्धा बद्धा बद्धलग. बन्देल्लगा बलियो बद्ध १०३३ [१] बद्धानि९१० [१-३],९११ [१३], ९१४ [१-२], ९१६ [१-२], ९१८ [१-२], ९२०, ९२१ । बलाहकः १२३१ बलिः - असुरकुमारेन्द्रः १८७ गा. १४४ बली, बलिः-असुरकुमारेन्द्रः १७८ [२] पर्वपरिवेष्टनम् ५४ [८] बलिमोडओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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