Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 822
________________ मनः बीयं परिसिटुं-सद्दाणुक्कमो मूलसद्दो सक्कयत्यो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो मणपज्जवणाण. मनःपर्यवज्ञान ४९५ [१] मणभक्खत्ताए मणपजवणाण- मनःपर्यवज्ञानपरिणामः मणभक्खी परिणामे मणपज्जवणाण- मनःपर्यवज्ञानसाकार सागारपासणया पश्यत्ता १९३७ मणसीकते मणपजवणाण- मनःपर्यवज्ञानसाकारो सागारोवओगे पयोगः १९०९ । मणं मणपजवणाणं मनःपर्यवज्ञानम् १४२१ मणाई [३], १४३५ १४५५ मणापत्ताए मणपज्जवणाणारिया मनःपर्यवज्ञानार्याः १०८ मणामतरिया मणपजवणाणि- मनःपर्यवज्ञानी १३५० मणपजवणाणी मनःपर्थवज्ञानी ४९६, मणामत्ताए __ १३५० मनःपर्यवज्ञानिनः २५७, मणामयरिया २५९,१८९८ [३], १९५४, १९५५ मणामा मणपजवणाणीणं मनःपर्यवज्ञानिनाम् २५७, मणि २५९ • मणपज्जवणाणेसु मनःपर्यवज्ञानेषु १२१६ मणि मणिमय मणपज्जवनाणं __ मनःपर्यवज्ञानम् १४३६ मणिरयणतं [१.२] मणिविहाणा मणपरियारगा मनःपरिचारका:- प्रवी- मणिसलागा चारकाः २०५२ [१,६], २०५३ मणिसिला मणपरियारगाणं मनःपरिचारकाणाम् मणिसिलागा प्रविचारकाणाम् २०५३ मणि मणपरियारणं मनःपरिचारणाम मणी प्रवीचारणाम्२०५२ [६] ०मणी मणपरियारणा मनःपरिचारणा-प्रवि मणुएसु चारणा २०५२ [१] ०मणुएसु .मणप्पभोगी मणुएहिंतो मनःप्रयोगिणः १०७७, •मणुएहितो १०७८, १०८३ मणुण्णतरिया • मणप्पभोगे मनःप्रयोगः १०६८ तः मणुण्णत्ताए १०७०, १०७४, १०७५ मणुण्णस्सरया मणभक्खणं मनोभक्षणम् १८६४ मणुण्णा मणभक्खणे मनोभक्षणे १८६४ । ग.९ [२]-२० सकयत्यो सुत्तंकाइ मनोभक्षतया १८६४ मनोभक्षी १७९३गा.२१८ मनोभक्षिण: १८६२, १८६४ मनसिकृते १८६४, २०५२ [२, ४-६] १५७० मनांसि २०५२ [६] मनआपतया पृ.४२२टि.६ मनोऽमतरिका १२२९ तः १२३१, १२३० मनोऽमतया १८०६ [१], २०५२ [२] मनोऽमतरिका १२३६, १२३८ मनोऽमाः १८६४ मणि १७८ [१२],१८८, १९५ [१] १९५ [१] मणिमय १९५ [१] मणिरत्नत्वम् १४६९ मणिविधानानि २४ गा.९ मणिशलाका पृ. २९६ टि. १३ मणिशिला मणिशलाका १२३७ मणिम् ९९९ [२] मणिः ९७२ गा. २०३ १२२९. मनुजेषु १९०६ १९०७ मनुजेभ्यः ६४८ मनुजेभ्यः १४६२ मनोज्ञतरिका १२३१ मनोज्ञतया २०५२ [२] मनोज्ञस्वरता १६८४ [१] मनोज्ञाः १६८१ [१], १६९० [२] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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