Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 825
________________ ३०८ मूलसहो मणूसाण मणूसाणं .मणूसाणं पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई सक्कयस्थो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो सक्कयत्यो सुत्तंकाइ [३], १५४४ [२], १७८३ [२], १७८८ [२], १६४४,२०११, २०३०, १८८१ [२], १८९० [२], २०४४, २०९९ [२] १८९२, २११४ २१६५, मनुष्याणाम् ९०८,१०३८ २१६९ [२], १०५० [३], | मणूसेसु मनुष्येषु ६७६, १४०८ १०७५, ११४२,११४७, [३], १४२१ [१], ११८१, १२५७ [१], १४३५, १४४०, १८८२ १६३८ [२], १६४९ [२], १९०४ [१], [२], १७८१, १७८४ २११९ [३] [३], १९५२, १९८२, • मणूसेसु मनुष्येषु ६६८ [७],६६९ २०२०, २०२५,२०९२, [१], ६७२ [५], ६७६, २०९९, २१२३ [३], १४२८[४], १९०३ [२], २१२४ [३], २१५२, १९०५[२], २१०० [२] पृ. ४३३ टि. १ मणूसेहितो मनुष्येभ्यः ६५५ [१], मनुष्याणाम् ११६४ [३], ६६२ [६] १२५७ [३, ५, ७, ११, ०मणूसेहितो १२] मणे मनः पृ. ४०० टि. १ मनुष्यात् १५८९ [३] मनसि २०३४ गा. २२४ मानुषी १२६३ [२], मणोजे मनोज्ञः-गुल्मवनस्पतिः १२६९, १७४७ [२], ४३ गा. २४ १७५२ मणोरमाई मनोरमाणि २०५२ [२,४] मानुष्यः १४१६ [२] मणोसिला मन:शिला २४ गा. ९ मानुषीणाम् १२५७ मणोसुहता मनःसुखता १६८१ [१] [८, ११-१३] मणोहराई मनोहराणि २०५२ [२] , १२५७ [४, १०] मण्णामि- मन्ये ,, १२५७ [२] मतिअण्णाण मत्यज्ञान ४४४ तः४४८, मनुष्यः ४८९ [१],४९१ ४६७ [१], १९२८, [१], ४९३ [१], ४९७, १९२९, १९३२ [१] ४९८, ९९४,९९९[१], मतिअण्णाण , ४४०, ४४१, ४४३, १२१२, १२५८ [१-२, ४७० [१], १९३१ ६, ८], १२६३ [१], मतिअण्णाणसागा. मत्यज्ञानसाकारोपयोगः १२६९, १४४२, १६०४ रोवोगे १९०९, १९१३, १९२१ [१], १६४२, १६४७ •मतिअण्णाणिस्स मत्यज्ञानिनः ४७० [१] [२],१६७६ [२], १६७८ मतिअण्णाणी मत्यज्ञानी ४७८, ४९६, [२],१७४७[२],१७५१, १३५२ १७५६ [२],१७६३ [२], मत्यज्ञानिनः ९३८, ९४० १७७३ [२], १७७७[२], [१], ९४१ [१] " •मणूसातो मणूसी मणूसीओ मणूसीण मणूसीण मणूसीणं मणूसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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