Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 821
________________ ३०४ मूलसद्दो सक्कत्थो सुकाइ मज्झदेस मध्यदेश २११ मज्झिम मध्यमा २११ गा. १६४ मध्यम मज्झिमए 33 मज्झिम० मज्झिमउवरिम गेवेज्जग ० मज्झिमउवरिम गेवेज्जगा १४६ [१], ७१९ मज्झिमउवरिम- मध्यमोपरितनग्रैवेयकाणाम् गेवेजाणं ४३२ [१] मज्झिमउवरिमाणं मध्यमोपरितनानाम्-ग्रैवेय मज्झिमगाणं पण्णवणासुत्त परिसिट्ठाई मूलसद्दो मज्झिमे मझे " २००५ १७७ Jain Education International मध्यमोपरितनग्रैवेयक ४३२ [२-३] मध्यमोपरितनग्रैवेयकाः काणाम् १८४७ मध्यम [ग्रैवेयके] २०९ गा. १५७ मध्यमकानाम्-ग्रैवेयकाणाम् २०८ ६२२ मज्झिमगेवेग मध्यम ग्रैवेयक मज्झिमगेवेज्जग- मध्यमग्रैवेयक देवानाम् देवाण २०८, २०९ मज्झिमगेवेज्जगा मध्यमग्रैवेयकाः २०८,३३४ मज्झिमवेज्जगाणं मध्यममैवेयकाणाम् २०८ मज्झिमवेज्जाणं मध्यम ग्रैवेयकाणाम् ६०२ • मज्झिमपरिणामे मध्यमपरिणामः १७४६ मक्षिममज्झिमगे- मध्यममध्यमग्रैवेयक बेज्जग० ४३१ [१-३] मज्झिमज्झिमगे- मध्यममध्यम ग्रैवेयक देवाः वेज्जगदेवा मज्झिममज्झिमगे- मध्यममध्यम ग्रैवेयकाः १४६ [१] ७१८ वेज्जगा मज्झिममज्झिमाणं मध्यममध्यमानाम्ग्रैवेयकाणाम् १८४६ मज्झिमट्ठिमगेवे- मध्यमाधस्तनग्रैवेयक ४३० [१-३] जग० मज्झिम हेट्ठिमगे - मध्यमाधस्तन ग्रैवेयकाः वेज्जगा मज्झिमहेट्टिमाणं १४६ [१], ७१७ मध्यमाधस्तनानाम्ग्रैवेयकाणाम् १८४५ मट्टमगरा मट्ट मट्टमगरा मट्ठा "" "" बनिवे मण मणजोगंमणजोगी "" मणजोगीणं ० मणपज्जत्ती • मणपज्जत्तीए • मणअपजत्तीए- मनोऽपर्याप्तकेषु (जत्तएसु) मणजोगपरिणामे मणजोगं सक्कत्थो मध्यमे मध्ये मणपज्जवणाण सुत्तकाइ पृ. ५५ टि. ३ १६८ तः १७४, १७४ गा. १३५, १७८ तः १८३ सूत्राणां प्रथमकण्डिका, १८५ [१], १८८, १८९ [१], १९९ तः २०६ सूत्राणां प्रथमकण्डिका, ८७७ [२०-२१] मकर विशेषः पृ. ३० टि. ३ सृष्ट १७७, १७८ [१-२], १८८, १९६ ६६ २११ २०६ [१] मृष्टानि १७७, १७८ [१], १८८, १९६, २०६ [१], २१० For Private & Personal Use Only मकर विशेषः मृष्टा मम्बनिवेशेषु मनः- मनः पर्यवज्ञान • मणपजत्ती पज्जत्तए मनः पर्याप्तिपर्याप्त के मनः पर्यवज्ञान ८२ १९२८ १९०६ मनोयोगपरिणामः ९३१ मनोयोगम् २१७३ [१], २१७४[१],२१७५ २१७४ [२] मनोयोगी १३२२, १९०० "" [२] मनोयोगिनः २५२, ९३८, ९४३ मनोयोगिनाम् २५२ मनः पर्याप्तिः १९०४ [३] मनः पर्याप्त्या १९०७, पृ. ४०६ टि. १ तः ५ १९०४ [१] ४५२ www.jainelibrary.org

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