Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 803
________________ सक्कयत्यो सुत्तंकाइ द्वादश ८२ द्वादशकस्य १७०० [४], १७०८ [४], १७३७ २४४ २८६ पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई मूलसद्दो सक्कयत्यो सुत्तंकाइ मूलसहो बायरनिगोदा बादरनिगोदाः २४४, २५० बारस० ०बारसगस्स बायरपजत्तया बादरपर्याप्तकाः २४४ ० बायरपुढविका. बादरपृथ्वीकायिकेषु बारसण्हं .बायरवणप्फइ- बादरवनस्पतिकायिकः बारसमओ काइए १३०९, १३१८ बारसमं .बायरवणप्फइ- बादरवनस्पतिकायिकाः बारसमो काइया बारसविहा .बायरवणप्फह- बादरवनस्पतिकायिकानाम् -काइयाणं २४७ बारसहिं बायरवाउकाइयाणं बादरवायुकायिका बालदिवागरे नाम् बालिंदगोवे ० बायरवाउकाइय-बादरवायकायिकैकेन्द्रिय- बावडिं एगिदियवेउ- वैक्रियशरीरम् १५१५ बावत्तरि ब्वियसरीरे [२-३] बायरसंपराए बादरसम्परायः १७४३ बावत्तरि बायरसंपराय० बादरसम्पराय १२१ बायरा बादराः २४५ [१] बायराई बादराणि ८७७ [१९] बावत्तरीए बायराण बादराणाम् १४९० [३] बावत्तरीणं बायरे बादरम् ८७७ [२३] बावीसइम • गा. १९८ बायालीसइविहे द्विचत्वारिंशद्विधम् १६९३ बावीसइम बायालीसं द्विचत्वारिंशत् २११, ३८५ [१] बावीसगं +बार द्वादशः ७९०गा.१८७ । बावीसं बारवती द्वारवती १०२ गा. ११४ बारस द्वादश ९१ [४], ९१ [४] गा. १११, १९९ बावीसाए [१], २०६ [२] गा. १५४, ३९६ [१,३], ५५९ गा. १८२, ५६० तः ५६३,५६५तः५६८, ०बाहलस्स ५८४, ५८६, ५९२, १०४१[४], १०६६[३], १५०७[१],१६९९ [१], बाहल्लं १७०२ [१८] । द्वादशानाम् १९९ [२] द्वादशः पृ. २०२टि.१ द्वादशम् पृ. २२८ पं. १९ द्वादशः ७९० गा.१८६ द्वादशविधाः १४४ [१], १५२० [५] द्वादशभ्यः ९९२ [१] बालदिवाकरः १२२९ बालेन्द्रगोपः १२२९ द्वाषष्टिः १५२९ [५] द्वासप्ततिः २०६ [२] गा. १५६ ,, १४७, १८४ [१], १८७ गा. १३८, ३८८ - [१, ३] द्वासप्ततेः १९९[२] द्वासप्ततेः १९९ [२]] द्वाविंशतितम ७९० गा. द्वाविंशतितमम् पृ. ३६२ पं. २७ द्वाविंशम् ७९० गा. १८८ द्वाविंशतिः ३४१ [१,३], ३४२ [१, ३], ३५४ [१, ३], ३५६ [१, ३], ४२६[१,३],४२७[१,३] द्वाविंशतेः द्वाविंशत्या वा ७१३, ७१४ द्वाविंशतौ १८४१,१८४२ बाहल्यस्य १८८, १८९ [१], १९० [१], १९३ " [१] बाहल्यम् ९७२ गा.२०२, ९८७ [१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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