Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 779
________________ २६२ मूलसद्दो पण्णवणासुत्तपरिसिट्ठाई सक्कयत्यो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो [२], २१५७, २१५९ पंचवण्णाई [२], २१६६ [४] पञ्चाक्षर २१७५ पंचवण्णाओ पञ्चगति २२५ पंचवन्नाई पञ्चकस्य १७१६, १७३५ पंचविहा [१], १७३६ [२] पञ्चानाम् १७०२ पंचक्खरपंचगति० पंचगस्स सक्कयत्यो सुत्तंकाइ पञ्चवर्णानि ८७७ [७], १७९८ [१] पञ्चवर्णाः १९५ [१] पञ्चवर्णानि १७९८ [१] पञ्चविधाः ७,८[१,३.५], ६२, ६५, १०८, १३३, १४२ [१], १४७ [१], १५२० [५] पञ्चविधा १८, १९, १००९ [१], १०११ [१], १०१२ [१], १०१४, १०१६ [१], १०९३, १०९५, २०५२ पंचण्ह पंचण्हं पंचतीसइमं पंचदिसिं पंचधणुसयाई पंचपएसिए पंचफासाई पंचम० पंचमए पंचम ,, १७९ [२], १८० २], १८२ [२] पञ्चत्रिंशत्तमम् पृ. ४२७ पं. ११ पञ्चदिशम् १७४, २१०, १५५३, १८०९ पञ्चधनुःशतानि १५२९ [१] पञ्चप्रदेशके पञ्चप्रदेशकः पञ्चस्पर्शानि ८७७ [१३] पञ्चम ९२१ [१] पञ्चमके ७९० गा. १८७ पञ्चमम् ११८० [६] पञ्चमीम् पृ. १७४ टि. १ पञ्चमी १५९९ [१], १६०१ पञ्चम्याम् २१७ [२], ३३४, २००४ पञ्चमीम् पृ. १७४ टि. १ , ६४७ गा. १८३ पञ्चमे २१७२ पञ्चमेषु २१७३ [२] पञ्चमः पृ. ३०१ पं. १० पञ्चकस्य १६९८ [१] पञ्चरसानि ८७७ [११] पञ्चवर्ण १७७ पञ्चवर्ण १७८ [१], पंचमा पंचमाए पञ्चविधानि पृ. १४ टि.२ पंचविहाणं पञ्चविधानाम् १५२० [४] पंचविहे पञ्चविधः ८८१, ८, ९३३, ९३६, ९५० तः ९५२, ९५४, १००७, १००८ [१], १०१५ [१], १०७२, १०८५, १६८२, १६८६ पञ्चविधम् १४७६, १४७७,१५३६, १५३५, १५५२, १६८८, १६८९ [२], १६९४[२,३,५-६, __ ९,११], १६६९ पंचवीसइम पञ्चविंशतितमम् पृ.३८८ पं. २० पञ्चसु ८२, १५४, १४२६ [१], १९०४ [१] , (तृ. स.) पञ्चभिः १२३२ पञ्चभिः ९६, ९७ [१], ४०० [१,३], ६९१ पंचंगुलितला पञ्चाङ्गलितलानि १७७, १५८ [१] पंचसु पंचमि पंचमी पंचमे • पंचमेसु पंचमो पंचयस्स पंचरसाई पंचवण्ण पंचवण्ण. वहि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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