Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 794
________________ २७७ . मूलसद्दो + पोरग सक्कयत्यो सुत्तंकाइ प्रभः २०१ [१] प्रमुख २५ [३],३१[४], ३४ [४], ५५ [३], ५७ [२], ५८ [२], ६८[४], ७५ [४], ८४ [४], ९१ पोराण पोराणे पौरपत्यम् पोरेवश्चं पोलिंदी [४] बीयं परिसिटुं-सहाणुक्कमो सक्यथो सुत्तंकाइ मूलसद्दो वनस्पतिविशेषः पृ.२० टि. ०प्पभे प्पमुह , पृ. २९६ टि. ७ पुराणान् १८०१,१८०६ [१], १८०९ १७७ पोलिन्दी-लिपिविशेषः प्पवाइत १०७ प्पवाइय पौषधोपवासम् १४२० ०प्पवाए ०प्पविटे पृथुत्वम् ९७२ गा. २०२, ९८७ [१] पार्थक्त्विकाः १५८४ [२], १५८७ [२],१६७४ [२], प्पिया १६७८ [३] पफासेहि पृथुत्वेन ९७६[१, ३-४], पोसहोववासं पोहतं ०प्पहा प्रवादित १७८ [२],१९६ ,, १७७,१७८[१],१८८ प्रपातः १०८५ प्रविष्टः १७४४ प्रभा पथा वा १६९,१७०, १७३ अपि प्रियाः १८८ स्पशैंः ५३२ [१], ५३६ • पोहत्तिया पि पोहत्तेणं [१] •पोहत्तेहिं पोंडरियदले पोंडरीए पोंडरीया ०प्पगारा पृथक्त्वेन १०६४ पृथक्त्वाभ्याम् १७६२ पुण्डरीकदलम् १२३१ +फणस पनसः ४१ गा.१६ पुण्डरीकम् ५१ फणसाण पनसानाम् ११२२, १२३५ रोमपक्षिविशेषः फणिजए वनस्पतिविशेषः४९ गा.४१ प्रकाराः २४,२८ [१], फरिसपरियारगा स्पर्शपरिचारकाः- प्रवी३१ [१], ४० तः ४२, चारकाः पृ. ४२३ टि. २ ४४ तः ४६, ५१, ५२, फलक २१७४[४] ५४ [११], ५७ [१], फलपत्तस्स फलप्राप्तस्य १६७९ ५८ [१], ६३, ६७, फलविंटिया त्रीन्द्रियजीवाः ५७[१] ७१, ७३, ७४, ७९, ८०, फलस्स फलस्य ५४ [३]गा. ६४, ८३, ८५ [१], ८५, __ ५४ [४]गा. ७४ १०५, १०६, ३५३, फला फलानि ४०,४१ ८४९, ८५०, ८५२ फलासवे फलासवः १२३७ प्रकारा८५१ फलिहवडेंसए स्फटिकवतंसकः१९८[१], प्रकाराणि ४७ तः४९, २०६ [१] फलिहा परिखाणि पृ. ५६ टि. २, प्रकाराः ३४[१] पृ. ५७ टि. ३, पृ. ६४ प्रभाः १८९ गा.१४७ टि. १ प्रभा पथा वा १६८ । स्फटिकः २४ गा.११ ०प्पगारे ०प्पभा फलिहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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