Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Shyamacharya, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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२६७
मूलसद्दो
पावं पावा
पावे पास पासह
दृष्टा
बीयं परिसिटुं-सदाणुक्कमो सक्कयत्थो सुत्तंकाइ । मूलसद्दो पापम् ११० गा. १२० पासातीता पापा-नगरी १०२
गा. ११६ पासादीया प्राप्नोति २११ गा. १७२ पासिउकामे म्लेच्छजातिविशेषः ९८ पासिउं पश्यति ९९० [२], पासित्ता ९९४, १२१५ [१-३], पासिय
१९६४ पासियवं पश्यत्ता १९४५, १९४८, पासेंति
१९५०, १९५१ पाहुया पश्यत्तया १९५५ पश्यत्ता-दर्शनता २ गा. ७, १९३६, १९४०, १९४४,
१९४७ , १९३६ तः १९३८, १९४० तः १९४२, १९४४, १९५०, १९५१,
१९५७ [१], १९५८ पश्यत्तापदम् पृ. ४१२ पं.
०पासणता
०पासणताए पासणया
०पासणया
सक्कयत्थो सुत्तंकाइ प्रसादनीयानि १७७,
१८८, १९६ , पृ. ५६ टि. ९ द्रष्टुकामः १६८० द्रष्टुम् ५४ [१०] गा.१०३
१६८० वृक्षविशेषः पृ.१७ टि. ९ द्रष्टव्यम् १६८० पश्यन्ति
९९६ त्रीन्द्रियजीवाः ५७ [१] अपि ५४ [७] गा. ८५, ५४ [१०] गा. १००, ८३, १८७ गा. १३९, १९० [२], १९४, १९७ [१], ६०६ तः ६१६, ६१९, ६२१ तः ६२४, ६५० [१०], ६५५ [४], ८७२, ८७५, ८७७ [५.१४, १८.२१], ८७८, ८८०, ९१२ [१], ९८३ [२], ९८७ [१], ९९३, १००१, ११८० [६, १०], ११८१, १२५८ [३], १४६४, १४७२, १५२० [५], १५६२, १७६२, १७८२, १७९८ [१-२], १८०० [१.२], १८५३, १९११, १९३९,२०२०, २०५६, २०५७ [३], २०५८, २०६४, २०६७, २०७०, २०७५, २०७४, २०८३, २१६८, २१६९, २१७३ [२], २१७४ [१३],
पृ. १९० टि. १ अपि ६९२, १२०५
पासणयापयं
पासति
पासवणेसु पासंति
पश्यति ९९० [२], ९९२ [२], ९९४, १२१५ [१-३], १६८०, १९६३,
१९६४, २१६९ प्रस्त्रवणेषु पश्यन्ति २११ गा. १७०, ९९५ [१], ९९६, ९९८, १९८३ तः १९९२, १९९४, १९९५, १९९७, १९९८,२००६, २००७, २०४०,२०४२, २०४३, २०४६, पृ. २९० टि. १ प्रसादनीयौ २०६ [१] प्रसादनीयानि १७८[१], १९५ [१], २०६ [१],
२१० प्रसादनीया २११
पासाईया
पासातीता
अपि
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